आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य संघर्ष की राजनीति का सबसे सक्षम चेहरा हैं. उन्होंने विभिन्न मोर्चाें पर कार्य किया. नतीजतन वे भारत की एकसूत्रता के शिखर पुरुष बन गए. उन्होंने राजनीति का ऐसा युग्म तैयार किया, जिसमें उलझकर तमाम कद्दावर राज्य भी परास्त हो गए. सिकंदर की सेना को हार कर देश छोड़ना पड़ा. मगध के राजा धननंद को सत्ताच्युत होना पड़ा.


चाणक्य ने अपनी राजनीति के दो केंद्र विकसित किए. एक पर उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य को स्थापित किया. दूसरे पर स्वयं मोर्चा संभाला. इससे उन्हें महत्वपूर्ण मौकों पर अनिर्णय स्थिति को सहजता से संभालने में आसानी हुई.


चाणक्य के मौन पर लोग चंद्रगुप्त की ओर रुख कर लेते थे. इससे चाणक्य को सटीक हल खोजने का समय मिल जाता था. इसी प्रकार चंद्रगुप्त कोई बात टालना होती थी तो वे गुरुवर की ओर लोगों को भेज देते थे. इससे चंद्रगुप्त महत्वपूर्ण विषय पर पक्ष रखने से बच जाते थे. 


ऐसा दो सत्ता ध्रुवों की स्थिति में ही संभव है. एक व्यक्ति यदि सभी जिम्मेदारियों को निभाएगा तो जबावदेह के रूप में भी वह अकेला नजर आएगा. ऐसे उसके लिए बच कर निकल पाना कठिन होगा. चाणक्य इस तथ्य को भलिभांति समझते थे. इसी काृरण उन्होंने चाणक्य को आरंभ में ही नायक की भूमिका में स्थापित कर दिया. जबकि वे चाहते तो सत्ता के सारे सूत्र हाथ में आ जाने के बाद ऐसा कर सकते थे. 


चाणक्य इस नीति से सिखाते हैं विकास की राजनीति में एक ध्रुव की अपेक्षा दो ध्रुव अधिक प्रभावी होते हैं. हालांकि इनका एक से अधिक होना शुभकर नहीं होता है.