नई दिल्ली: एकादशी का व्रत सभी प्रकार के व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है. एकादशी के व्रतों में भी षटतिला एकादशी के व्रत को श्रेष्ठतम व्रतों में से एक माना गया है. इस दिन दान और कथा सुनने से कई प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख शांति और समृद्धि बनी रहती है. इस दिन सुनी जाने वाली कथा को षटतिला एकादशी व्रत कथा कहा जाता है. इस दिन इस कथा को सुनने से कई लाभ मिलते हैं. इस कथा में भगवान विष्णु और नारद जी से सवांद करते हैं.


ऋषि पुलस्त्य ने यह कथा दालभ्य ऋषि को सुनाई थी. ऋषि पुलस्य के अनुसार एक समय नारदजी ने भगवान विष्णु से लोक कल्याण के लिए प्रश्न किया. जिसके बाद भगवान विष्णु ने षटतिला एकादशी के महत्व के बारे में नारदजी को बताया. भगवान विष्ण ने बताया कि प्राचीन काल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी. वह सदैव व्रत करती, एक बार उसने एक माह तक व्रत किया, जिसके कारण उसकी काया अत्यंत क्षीण व दुर्बल हो गई. बुद्धिमान होने के बावजूद उसने कभी देवताओं या ब्राह्मणों के लिए अन्न या धन का दान नहीं किया था.


इससे मैंने सोचा कि ब्राह्मणी ने व्रत आदि से अपना शरीर शुद्ध कर लिया है, अब इसे विष्णुलोक तो मिल ही जाएगा परंतु इसने कभी अन्न का दान नहीं किया, इससे इसकी तृप्ति होना कठिन है. आगे की कथा को जारी रखते हुए भगवान विष्णु नारदजी से बोले कि ऐसा सोचकर मैं भिखारी के वेश में मृत्युलोक में उस ब्राह्मणी के पास गया और उससे भिक्षा मांगी. उसने भगवान से प्रश्न किया कि उनका कैसे आना हुआ. भिखारी के वेश में भगवान बोले कि मुझे कुछ दें, मुझे भिक्षा चाहिए. इस पर ब्राह्मणी ने पास में रखा एक मिट्टी का ढेला मेरे भिक्षापात्र में डाल दिया. जिसे लेकर मैं स्वर्ग लौट आया. कुछ समय बाद ब्राह्मणी की मौत हो गई. ब्राह्मणी को मिट्टी का दान करने से स्वर्ग में सुंदर महल मिला, लेकिन उसने अपने घर को अन्न और अन्य चीजों में शून्य पाया.


घबराकर वह मेरे पास आई और कहने लगी कि भगवन् मैंने अनेक व्रत आदि से आपकी पूजा की परंतु फिर भी मेरा घर अन्नादि सब वस्तुओं से शून्य है. इसका क्या कारण है? इस पर मैंने कहा- पहले तुम अपने घर जाओ. देवस्त्रियां आएंगी तुम्हें देखने के लिए. पहले उनसे षटतिला एकादशी का पुण्य और विधि सुन लो, तब द्वार खोलना. मेरे ऐसे वचन सुनकर वह अपने घर गई. जब देवस्त्रियां आईं और द्वार खोलने को कहा तो ब्राह्मणी बोली- आप मुझे देखने आई हैं तो षटतिला एकादशी का माहात्म्य मुझसे कहो.

उनमें से एक देवस्त्री कहने लगी कि मैं कहती हूं, जब ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का माहात्म्य सुना तब द्वार खोल दिया. देवांगनाओं ने उसको देखा कि न तो वह गांधर्वी है और न आसुरी है वरन पहले जैसी मानुषी है. उस ब्राह्मणी ने उनके कथनानुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया. इसके प्रभाव से वह सुंदर और रूपवती हो गई तथा उसका घर अन्नादि समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया. अत: मनुष्यों को मूर्खता त्यागकर षटतिला एकादशी का व्रत और लोभ न करके तिलादि का दान करना चाहिए. इससे दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है.