Aura Development: अकसर कोई व्यक्ति से भेंट होती है तो उसके भीतर का तेज आकर्षक व्यक्तित्व होता है, वहीं दूसरी ओर किसी से मिलने पर नकारात्मकता और व्यक्तित्व में दुर्गंध समझ में आती है. इसमें अहम भूमिका व्यक्ति के औरे की है. सभी व्यक्ति, जीव-जंतु तथा पेड़-पौधे हमेशा एक प्रकार की ऊर्जा से घिरे हुए रहते हैं. 


प्रकृति में एक प्रकार का विद्युत चुंबकीय क्षेत्र होता है. जिससे निरंतर ऊर्जा का उत्सर्जन होता रहता है. जिसे औरा के नाम से जाना जाता है. इसे प्राण ऊर्जा, आभामंडल या प्रभामंडल के नाम से भी जाना जाता है. औरा व्यक्ति के व्यवहार में छिपे हुए असली स्वभाव को दर्शाता है. किसी वस्तु का सूक्ष्म रूप औरा है.


औरा अर्थात प्रभामंडल एक ऐसी चमक है जो किसी व्यक्ति के मध्य से आंतरिक ऊर्जा को सृजित करके उसके चेहरे अथवा ऊपरी भाग पर एक चमक के रूप में दिखाई देता है. जैसे हम किसी स्थान पर पहुंचते हैं और हम सोचते हैं कहां फंस गए? कई बार हम अपने ही घर में किसी व्यक्ति से बात करना या उसके पास बैठना पसंद नहीं करते. यदि कोई मित्र या परिचित व्यक्ति मिलने आता है तो हम उसे टाल देते हैं. किसी स्थान पर हम बार-बार जाते हैं और हमें शांति मिलती है. बहुत भीड़ में कोई व्यक्ति हमें अच्छा लगता है और उसे बार-बार देखने और बात करने का हमारा मन करता है. 


किसी मंदिर में बार - बार जाना और वहां शांति का अनुभव होना. यह सब प्रभामंडल के कारण हमको अपनी ओर खींचता है जिसका औरा जितना कमजोर व प्रभावशाली होगा, वह उसकी ओर से दूर करता व खींचता जाएगा. औरे का क्षेत्र शरीर के 4-5 इंच बाहर तक होता है. यह अदृश्य चमकदार ऊर्जा क्षेत्र शरीर के चारों ओर, शरीर की बनावट के समान रहता है. यह सुरक्षा कवच प्राण शक्ति और ऊर्जा से भरा हुआ होता है . 


रोग से घटता है आभामंडल 


शरीर में किसी प्रकार के रोग के लक्षण होने से पूर्व शरीर के औरा पर उसका प्रभाव दिखने लगता है. किसी भी व्यक्ति के रोग का संबंध प्रभामंडल से गहरा जुड़ा होता है. यह सुरक्षा कवच उस व्यक्ति के शरीर में रोग को रोकने का भी कार्य करता है. 


जब किसी अंग का औरा क्षतिग्रस्त हो जाता है तो इसका अर्थ है कि वह अंग शक्ति से क्षीर्ण हो गया है जिससे औरा घट जाता है. औरा के घटने का मुख्य कारण नकारात्मक ऊर्जा और तरंगे हैं. आधुनिक युग में मोबाइल फोन, टीवी, एसी इत्यादि नकारात्मक ऊर्जा का उत्सर्जन करती रहती है, जो प्रभामंडल को क्षतिग्रस्त करने के साथ-साथ हमारे प्राकृतिक प्रभामंडल को भी समाप्त करती रहती है. 


बाहरी औरा कई रंगों का मिश्रण होता है. व्यक्ति क्या सोचता है, उसके विचारों का प्रभाव औरा के रंग पर पड़ता है. चिंतन, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या इन सबके कारण से प्राण ऊर्जा निकलकर बिखरने लगती है और शरीर रोग ग्रस्त होने लगता है. मन में अशांति के कारण शरीर कमजोर हो जाता है जिससे औरा भी कमजोर हो जाता है. जिससे बैक्टीरिया, वायरस शरीर में प्रवेश कर शरीर को रोग ग्रस्त कर देते हैं . मनोविशेषज्ञों का मानना है कि बीमारियां मन से होती हैं अतः इसका उपचार करने के लिए मन, शरीर व आत्मा पर समान रूप से कार्य करना चाहिए. इन पर नियंत्रण रखा जाए तो हम रोगी को जल्दी ठीक कर सकते हैं. अत : इस गंदे औरा को साफ करना जरूरी है. औरा की सफाई सदैव ऊपर से नीचे की ओर करनी चाहिए. यदि सफाई ठीक तरह से हुई है तो रोगी को बेचैनी महसूस होने लगती है और नींद आने लगती है. 


मनुष्य को अपने भीतर छिपे इन औरा को पहचानने की जरूरत है. जब व्यक्ति को इसका ज्ञान हो जाता है तो उसको जीवन की सच्ची खुशी, प्यार और शांति का अहसास होता है. आप अध्यात्म, अच्छी सोच, दान-दक्षिणा करके अपने क्षतिग्रस्त प्रभामंडल को बलवान बना सकते हैं.


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