Ram Janam Sohar: रामलला की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को, यहां पढ़िए राम जन्म का सुंदर सोहर
Ram Janam Sohar: पौष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि यानी 22 जनवरी को राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी. इस अवसर पर हम आपके लिए लेकर आएं हैं रामलला के जन्म से जुड़े बधाई गीत, भजन या सोहर.
Ram Janam Sohar: श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में बना भव्य राम मंदिर खूब चर्चा में है. भक्तों को तो 22 जनवरी का इंतजार है. इस दिन रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी. भगवान राम का जन्म राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था.
भगवान राम के जन्म के बाद रामलला की किलकारी से पिता दशरथ की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वहीं अवधपुरी, 14 भुवन और संपूर्ण ब्रह्मांड भी मंगलगान से गूंज उठा था. त्रेतायुग के समय की ऐसी ही अनुभूति कलियुग में आज भक्तों और सनातन प्रेमियों को हो रही है.
अयोध्या में बने नवनिर्मित अयोध्या राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का अवसर भी उनके जन्म जैसा ही होगा. वैसे तो भगवान राम का जन्म वाल्मीकि रामायण के अनुसार चैत्र शुक्ल की नवमी तिथि को हुआ था और इस दिन भगवान राम का जन्मोतत्सव मनाया जाता है. लेकिन पौष शुक्ल की द्वादशी को जिस दिन रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा होगी, वह भी दिन भी उनके जन्मोत्सव के समान ही होगा. इसे लेकर अभी से ही चारों तरफ वातावरण राममय हो चुका है. इस विशेष अवसर के लिए हम आपके लिए लेकर आएं हैं रामलला के जन्म के सबसे सुंदर सोहर. इन गीतों के बोल सुनकर आप भी राम के भक्ति रस में डूबकर राममय हो जाएंगे.
राम जन्म सोहर (Ram Janam Sohar)
जुग जुग जियसु ललनवा, भवनवां के भाग्य जागल हो.
ललना लाल होई हैं, कुलवा के दीपक, मनवा में आस जागल हो..
आजु के दिनवां सुहावन, रतिया लुभावन हो.
ललना दिदिया के जन्में होरिलवा, होरिलवा बड़ा सुंदर हो..
जुग- जुग जियसु ललनवा-2
नकिया तो होवे जैसे बाबूजी के, अंखियां तो माई के हो.
ललना मुखवा तो, चांद सुरजवा तो, सगरो अंजोर भैले हो..
जुग- जुग जियसु ललनवा-2
सासू सुहागिन भागिन तो, अनधन लुटा वेली हो.
ललना दुआरा पे बाजे बधैय्या, आंगन उठे सोहर हो..
जुग- जुग जियसु ललनवा-2
नाचि-नाचि गावेली ननदिया, तो ललन का खेला वेली हो.
ललना हसि - हसि टिहुकी चलावे,तो रस बरसा वेली हो..
जुग- जुग जियसु ललनवा-2
राम जन्म सोहर गीत (Ram Janam Badhai Geet)
ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां
किलकि किलकि उठत धाय गिरत भूमि लटपटाय,
धाय मात गोद लेत दशरथ की रनियां
अंचल रज अंग झारि विविध भांति सो दुलारि,
तन मन धन वारि वारि कहत मृदु बचनियां,
विद्रुम से अरुण अधर बोलत मुख मधुर मधुर,
सुभग नासिका में चारु लटकत लटकनियां,
तुलसीदास अति आनंद देख के मुखारविंद
रघुवर छबि के समान रघुवर छबि बनिया.
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