Ramcharitmanas Chaupai: मंगल भवन अमंगल हारी..यहां जानें रामचरितमानस की सर्वश्रेष्ठ चौपाई
Ramcharitmanas Chaupai: गोस्वामी तुलसीदास की रामाचरित मानस की चौपाईयों में से जानते हैं कुछ ऐसी श्रेष्ठ चौपाई के बारे में जोकि बहुत प्रसिद्ध है.
Ramcharitmanas Chaupai: अयोध्या में रामलला का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो चुका है. रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को होगी. फिलहाल चहुंओर राम मंदिर की ही चर्चा है. ऐसे में प्रकाश डालते हैं रामचरित मानस की चौपाई पर.
रामचरित मानस में श्रीराम के जीवन पर विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है. साथ ही इसमें नीतिकर्म, धर्म, भक्ति और ईश्वर के प्रति प्रेम भावना की महत्ता पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है. इसलिए आध्यात्मिक जानकार इसके पाठ को बहुत ही लाभाकारी बताते हैं. इसका पाठ करने से जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं.
रामचरितमानस 27 श्लोक, 4608 चौपाई, 1074 दोहा, 207 सोरठा और 86 छद हैं. यहां जानेंगे ऐसी सर्वश्रेष्ठ चौपाई के बारे में, जोकि जनमानस के बीच बहुत प्रसिद्ध है.
मंगल भवन अमंगल हारी।
द्रवहु सुदसरथ अचर बिहारी।।
हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
जा पर कृपा राम की होई।
ता पर कृपा करहिं सब कोई॥
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया।
तिनके ह्रदय बसहु रघुराया॥
होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
बिनु सत्संग विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
करमनास जल सुरसरि परई,
तेहि को कहहु सीस नहिं धरई॥
गुर बिनु भव निध तरइ न कोई।
जौं बिरंचि संकर सम होई॥
रामचरित मानस की ये चौपाई बहुत ही सुप्रसिद्ध है. इसके अलावा रामचरितमानस में अन्य और चौपाईयां भी हैं जो इसकी महत्ता और सुंदरता को दर्शाते हैं. आइये जानते हैं अर्थ सहित इन चौपाई के बारे में- (Ramcharitmanas Chaupai in Hindi)
सुमति कुमति सब कें उर रहहीं।
नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना।
जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥
अर्थ: हे नाथ! पुराण और वेद ऐसा कहते हैं कि सुबुद्धि और कुबुद्धि सबके मन में रहती है, लेकिन जहां सुबुद्धि होती है, वहां विभिन्न प्रकार की संपदाएं यानी सुख और समृद्धि रहती है और जहां कुबुद्धि है, वहां विभिन्न प्रकार की विपत्तियों का वास होता है.
बिनु सत्संग विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई।
पारस परस कुघात सुहाई॥
अर्थ: सत्संग के बिन विवेक नहीं यानी अच्छा-बुरा समझने की क्षमता विकसित नहीं होती है. राम की कृपा के बिना अच्छी संगति की प्राप्ति नहीं होती है. सत्संगति से ही अच्छे ज्ञान की प्राप्ति होती है. दुष्ट प्रकृति के लोग भी सत्संगति वैसे ही सुधर जाते हैं जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुंदर सोना बन जाता है.
जा पर कृपा राम की होई।
ता पर कृपा करहिं सब कोई॥
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया।
तिनके ह्रदय बसहु रघुराया॥
अर्थ: जिस मनुष्य पर राम की कृपा होती है उस पर सभी की कृपा होने लगती है और जिनके मन में कपट, दंभ और माया नहीं होती, उनके हृदय में भगवान राम का वास होता है.
कहेहु तात अस मोर प्रनामा।
सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी।
हरहु नाथ मम संकट भारी॥
अर्थ: हे तात आप मेरा प्रणाम स्वीकार कर मेरे सभी काम को पूरा करें. आप दीनदयाल हैं सभी व्यक्तियों के कष्ट दूर करने की प्रकृति है. इसलिए आप मेरे सभी कष्टों को दूर कीजिए.
हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
रामचंद्र के चरित सुहाए।
कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥
अर्थ: भगवान हरि अनंत हैं और उनकी कथाओं का कोई अंत नहीं है. उनकी कथाओं का रसपान लोग विभिन्न प्रकार से करते हैं. यानी कथाओं की विवेचना लोग अलग-अलग करते हैं. राम का चरित्र किस तरह है करोड़ों बार भी उनको गाया नहीं जा सकता है.
धीरज धरम मित्र अरु नारी
आपद काल परखिये चारी॥
अर्थ: धीरज, धर्म, मित्र और नारी. इन चारों की परख विपत्ति के समय ही होती है.
जासु नाम जपि सुनहु भवानी।
भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बंध तरु आवा।
प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥
अर्थ: भगवान शिव कहते हैं- हे भवानी सुनो, जिनका नाम जपकर जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हुआ जा सकता है क्या उनका दूत किसी बंधन में बंध सकता है. लेकिन प्रभु के काम के लिए हनुमान जी ने स्वयं को शत्रु के हाथ से बंधवा लिया.
रघुकुल रीत सदा चली आई
प्राण जाए पर वचन न जाई॥
अर्थ: रघु के कुल की सदा ऐसी रीत चली आई है कि प्राण भेल ही चले जाए लेकिन वचन की मर्यादा कभी न जाए.
एहि महँ रघुपति नाम उदारा।
अति पावन पुरान श्रुति सारा॥
मंगल भवन अमंगल हारी।
उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥
अर्थ: रामचरितमानस में श्री रघुनाथजी का उदार नाम है जो पवित्र है, वेद-पुराणों का सार है, मंगल करने वाला और अमंगल को हरने वाला है, जिसे पार्वती जी सहित स्वयं भगवान शिव सदा जपते हैं.
जाकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरति देखी तिन तैसी॥
अर्थ: जिसके मन में जैसी भावना होती है प्रभु के दर्शन भी उसे उसी रूप में होते हैं.
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