Badrinath Dham Yatra 2023: बद्रिनाथ धाम यात्रा किस दिन से शुरू हो रही है? यहां नोट कर लें डेट, टाइम और इस दिन बनने वाले शुभ मुहूर्त
Badrinath Dham Yatra 2023: बद्रीनाथ धाम के पट 27 अप्रैल 2023 को खुलेंगे. इस साल बद्रीनाथ धाम यात्रा बेहद शुभ संयोग में शुरू होगी. आइए जानते हैं बद्रीनाथ धाम के पट खुलने का समय और इससे जुड़ी जानकारी.
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Badrinath Dham Yatra 2023: हिंदु धर्म के चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु का प्रमुख निवास स्थल है. बद्रीनाथ धाम के पट इस साल 27 अप्रैल 2023 गुरुवार को खुलेंगे. जगत के पालन हार भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर और नारायण ऋषि की यह तपोभूमि है.
बद्रीनाथ को सृष्टि का आठवां वैकुंठ कहा जाता है, यहां भगवान विष्णु 6 माह जागते हैं और 6 माह निद्र अवस्था में निवास करते हैं. इस साल बद्रीनाथ धाम यात्रा बेहद शुभ संयोग में शुरू हो रही है. आइए जानते हैं बद्रीनाथ धाम के पट खुलने का समय और इससे जुड़ी जानकारी.
बहुत शुभ योग में खुलेंगे बद्रीनाथ धाम के कपाट
हर साल भक्तों को बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने का बेसब्री से इंतजार रहता है. इस साल 27 अप्रैल 2023 को बद्रीनाथ धाम यात्रा शुरू हो जाएगी. तीर्थ यात्री सुबह 07.10 मिनट पर ब्रदी विशाल के दर्शन कर पाएंगे. इस दिन गुरुवार है जो भगवान विष्णु को समर्पित हैं, साथ गुरु पुष्य योग का संयोग भी बन रहा है. ऐसे में श्रीहरि के दर्शन करने पर लक्ष्मी-नारायण की कृपा बरसेगी. पिछले साल 19 नवबंर 2022 को बद्रीनाध धाम के कपाट बंद हुए थे.
बद्रीनाथ धाम कपाट खुलने का ये रहस्य है अद्भुत
हर साल बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिर शीत ऋतु की शुरुआत में भक्तों के लिए छह माह तक बंद हो जाते हैं, क्योंकि यहां बर्फबारी होती है. बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने का तरीका भी अनूठा है. मंदिर के कपाट बद्रीनाथ धाम तीन चाबियों से खुलता है, ये तीनों चाबियां अलग-अलग लोगों के पास होती हैं.
वहीं कपाट बंद होते समय ही श्रीहरि की मूर्ति में घी का लेप लगाया जाता है. कपाट खोलने के बाद रावल (नर) इसे सबसे पहले इसे हटाते हैं. मान्यता है कि अगर मूर्ति घी में पूरी तरह लिपटी है, तो उस साल देश में खुशहाली आएगी और अगर घी सूखा या कम हुआ तो अधिक वर्षा की स्थिति बनती है.
बद्रीनाथ धाम से जुड़ी जानकारी
बद्रीनाथ धाम उत्तरांचल में अलकनंदा नदी के तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत के बीच स्थित है. यहां नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है. मंदिर में श्रीहरि विष्णु की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, जो चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में निवास करते हैं.
प्राचीन काल में विष्णुजी इसी क्षेत्र में तपस्या करते थे और देवी लक्ष्मी बेर का पेड़ बनकर उन्हें छाया प्रदान करती थीं. लक्ष्मी जी की समर्पण भाव देखकर श्रीहरि बेहद प्रसन्न हुए और इस जगह को बद्रीनाथ नाम दिया गया. वहीं एक तथ्य ये भी है कि इस क्षेत्र में अधिक मात्रा में जंगली बेरी पाई जाती है, इसे बद्री भी कहते हैं.
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