Baisakhi 2020: बैसाखी का पर्व विशुद्धरूप से हमारे अन्नदाताओं का है. वो अन्नदाता जो धरती का सीना चीर कर हमारे लिए अन्न पैदा करते हैं. बैसाखी का पर्व मेहनतकश किसानो को समर्तित है. जब खेतों में रबी की फसल पक कर तैयार हो जाती है और खेतों पर सुनहली चादर बिछ जाती है तब बैसाखी का पर्व आता है. पसीने से सींची गई फसल को जब किसान काटकर घर लाते हैं तो किसान इसका जश्न मानते हैं. नाचते गाते हैं और अन्न की पूजा करते हैं.


बैसाखी का पर्व पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और आसपास के प्रदेशों में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. कई जगहों पर मेलों का आयोजन होता है. विशेष बात ये है कि बैसाखी के दिन ही 1969 में सिखों के दसवें और अंतिम गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी.
बैसाखी के पर्व से ही सिखों के नए साल का आगाज होता है. बैसाखी इसी नए साल का पहला दिन है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी यह दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है. इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहा जाता है.


लॉकडाउन में ऐसे मनाएं बैसाखी


पूरे देश में लॉकडाउन है. ऐसे में इस पर्व पर सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा पालन करते हुए घर के सदस्यों के साथ ही मनाएं. इस दिन सुबह स्नान करने के बाद सूर्य भगवान की पूजा करें और उन्हें जल अर्पित करें. इस दिन अन्न की पूजा करें और देश के अन्नदाताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करें और भगवान से देश के किसानों के लिए प्रार्थना करें.


असम में बिहू और बंगाल में कहते हैं पोइला


बैसाखी के पर्व को देश के कई अन्य राज्यों में भी अलग अलग नामों के साथ मनाने की परंपरा है.पंजाब और हरियाणा में बैसाखी, असम में इस त्योहार को बिहू के नाम मनाया जाता है. वहीं बंगाल में इसे पोइला बैसाख कहा जाता है. केरल में इसे विशु कहते हैं.


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