Hanuman ji ki Aarti: मंगलवार के दिन करें पवनपुत्र हनुमान जी की आरती, दिन हो जाएगा मंगल
Hanuman ji ki Aarti: हनुमान जी तीनों लोकों में सर्वशक्तिमान हैं. वे कष्ट और रोगों को हर लेते हैं. हनुमान चालीसा और आरती से जीवन की सारी बाधाएं तो दूर होती ही हैं. आइए जानते हैं हनुमान जी की आरती.
Hanuman ji ki Aarti: हनुमान जी को संकटमोचन कृपानिधान कहते हैं. कहते हैं कि हनुमान जी की दया और आशीर्वीद से सारी परेशानियां दूर हो जाती है. सारे रोगों का निवारण हो जाता है, मन स्वच्छ और तेज रहता है और भय-भूत भाग जाते हैं. हनुमान जी को भगवान शिव का 11वां अवतार माना जाता है. कहते हैं कि कलयुग में अगर कोई देवता धरती पर विराजमान हैं तो वो केशरी नंदन हनुमान ही हैं. इनका जन्म त्रेता युग के अंतिम चरण में चौत्र मास की पुर्णिमा को हुआ था. भक्तजन इनके अवतरण दिवस को हनुमान जयंती के रूप में बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं.
हनुमान जी को भक्त शिरोमणि भी कहा जाता है. हनुमानजी भक्ति की उच्च प्राकाष्ठा है, जहां भगवन् भी उनके सामने नत-मस्तक हो जाते है. इसलिये हनुमानजी को भक्त-शिरोमणि भी कहा जाता है. हनुमान जी जोकि प्रभू श्री राम के परम भक्त हैं, जिनके सीने में राम और जानकी निवास करते हैं.जो सर्वशक्तिमान हैं, जो कई रूपों के धारक हैं.
हनुमान जी की अराधना का विशेष महत्व और दर्जा है. सनातन परंपरा में हनुमान जी का दिन मंगलवार माना गया है, इस दिन हनुमान जी की पूजा-पाठ-आरती करने से भक्तों पर अतिरिक्त कृपा बनती है. आइए जानते हैं हनुमान जी की आरती जिसको करने से बजरंग बली प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर बनती है विशेष कृपा.
हनुमान जी की आरती (Hanuman Ji Ki Aarti)
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।।
अंजनि पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई।
दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।
लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे।
पैठी पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े।
बाएं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।
सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे।
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।
लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।
जो हनुमानजी की आरती गावै। बसी बैकुंठ परमपद पावै।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।
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