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बसंत पंचमी 2020: बन रहा है खास योग, ज्ञान और बुद्धि की वृद्धि के लिए उठाएं लाभ
मां सरस्वती की पूजा अर्चना करने से हर मनोकामना होगी पूरी. बुधवार के दिन बसंत पंचमी होने से गणेश जी का भी मिलेगा आर्शीवाद.
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बसंत पंचमी का पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. इसका संबंध ज्ञान और शिक्षा से है. हिंदू धर्म में मां सरस्वती को ज्ञान की देवी माना गया है. इस बार बसंत पंचमी बुधवार के दिन है. बुधवार का दिन गणेश जी का दिन माना जाता है. इस दिन मां सरस्वती और भगवान गणेश का संयोग बन रहा है जो बहुत ही शुभ है.
बसंत पंचमी के दिन पीले रंग को धारण किया जाता है. इसलिए इन दिन पीले वस्त्र पहनने की भी परंपरा है. बसंत पंचमी को पीले पुष्पों से मां सरस्वती की पूजा की जाती है. उन्हें पीले वस्त्र भेंट किए जाते हैं. इस दिन से ही बंसत ऋतु का आरंभ होता है. सर्दी का जाना शुरू हो जाता है. सूर्य अपने पुराने तेवरों की ओर लौटने लगते हैं. सभी ऋतुओं में बसंत को सबसे खूबसूरत ऋतु माना गया है. इस दिन बसंत ऋतु का आरंभ होता है, इस दिन से पेड़, पौधे नई रंगत में लौटते हैं, बागों में फूल खिलने लगते हैं.
शुभ कार्यों की दृष्टि से बसंत पंचमी का दिन बहुत ही शुभ है. शादी विवाह संबंध, गृह प्रवेश, शिक्षण कार्य के लिए बसंत पंचमी का दिन बहुत ही शुभ होता है. इस दिन को मां सरस्वती की जयंती के तौर पर भी मनाते हैं.
बसंत पंचमी पंचांग के अनुसार
बसंत पचंमी आरंभ - 10:45 AM 29 जनवरी बसंत पचंमी समापन - 01:19 PM 30 जनवरी बसंत पचंमी पूजा मुहूर्त- 10:45 AM से 12:52 PM तक
सरस्वती मंत्र
सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी, विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा
बसंत पंचमी की पौराणिक कथा
सृष्टि के रचियता भगवान ब्रह्मा ने जब सृष्टि की रचना की तो इसमें सभी को स्थान प्रदान किया. सृष्टि को भरने के लिए ब्रह्म ने वृक्ष, जंगल, पहाड़, नदी और जीव जन्तु सभी की सृष्टि की. इतना सबकुछ रचने के बाद भी ब्रह्मा जी को कुछ कमी नजर आ रही थी, वे समझ नहीं पा रहे थे कि वे क्या करें. काफी सोच विचार के बाद उन्होने अपना कमंडल उठाया और जल हाथ में लेते हुए उसे छिड़क दिया. जल के छिड़कते ही एक सुंदर देवी प्रकट हुईं. जिनके एक हाथों में वीणा थी, दूसरे में पुस्तक. तीसरे में माला और चौथा हाथ आर्शीवाद देने की मुद्रा में था.
इस दृश्य को देखकर ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए. इस देवी को ही मां सरस्वती का कहा गया. मां सरस्वती ने जैसे ही अपनी वीणा के तारों को अंगुलियों से स्पर्श किया उसमें से ऐसे स्वर पैदा हुए कि सृष्टि की सभी चीजों में स्वर और लय आ गई. वो दिन बंसत पंचमी का था. तभी से देव लोक और मृत्युलोक में मां सरस्वती की पूजा शुरू हो गई.
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