Basant Panchami 2023: सभी ऋतुओं में श्रेष्ठ है 'ऋतुराज बसंत’, जानें बसंत पचंमी पर देवी सरस्वती की पूजा का महत्व
Basant Panchami 2023: पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को पड़ती है. इस दिन से ही बसंत ऋतु की शुरुआत हो जाती है. इस साल बसंत पचंमी 26 जनवरी 2023 को है.
Basant Panchami 2023, Saraswati Puja Importance: इस साल 2023 में गुरुवार 26 जनवरी, माघ शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी है. बसंत पंचमी के दिन ज्ञान, विद्या और कला की देवी सरस्वती की पूजा-अराधना का विधान है. बसंत पंचमी के दिन से ही बसंत ऋतु की शुरुआत भी हो जाती है, जो सभी ऋतुओं में श्रेष्ठ है. बसंत पंचमी के बारे में विशेष जानकारी दे रहे हैं विख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित सुरेश श्रीमाली-
ऋतुओं में श्रेष्ठ है 'ऋतुरात बसंत'
तन-मन को प्रफुल्लित करती हवा के झोंके की सरसराहट, वृक्षों पर फुदकती चिड़ियों की चहचहाट, कोयल की कूक, भंवरों का गुंजन, खिले हुए सुन्दर रंग-बिरंगें विशेषतः पीले सरसों के फूलों की खेतों पर बिछी चादर, नदियों की कलकल, मौसम की सुहानी हलचल, पंख फैलाए नाचते सुंदर मोर, ये सब देखकर लगता है कि प्रकृति कह रही हो कि ऋतुराज बसंत का आगमन हो रहा है. सभी ऋतुओं में श्रेष्ठ जिसे ऋतुराज माना गया. इसी बसंत में बसंत पंचमी को वाणी विद्या की देवी सरस्वती की पूजा का विशेष महत्व है.
बसंत पंचमी पर देवी सरस्वती की पूजा का महत्व
बसंत पंचमी का अवसर वाणी-विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए विशेष महत्व है, जिसका सुखद एहसास सभी देवी-देवों और ग्रहों तक को हो, जिसका हर दिन दूध में बताशे की तरह घुल जाए फिर जिस बसंतोत्सव के अधिष्ठाता श्रीकृष्ण हों, जिसके प्रमुख देवता कामदेव-रति हों, जिससे यह ऋतु कामदेव की सहचर मानी जाए, उसके वर्णन में उसके प्रभाव तथा जो प्रकृति को पीले फूलों से श्रृंगारित कर दें, उसके लिए अनगिनत शब्द भी कम होंगे.
बसंत के उत्सव में पूजा बृजप्रदेश राधा-कृष्ण की अद्भुत लीलाओं के आनंद में विभोर हो जाता है. इसी दिन से होली और धमार गीतों का प्रारंभ किया जाना उल्लेखनीय है. वैसे बसंत ऋतु के अन्तर्गत माघ के साथ ही चैत्र और वैशाख माह आते हैं. लेकिन बसंत पंचमी का मुख्य उत्सव माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही मनाया जाता है.
इसी दिन देवी बागेश्वरी जयंती भी है. कामदेव और रति पूजा महोत्सव भी है. लेकिन मुख्यतः देवी सरस्वती की पूजा-साधना के लिए यह दिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है. क्योंकि इसी दिन देवी सरस्वती का अतरित हुई थीं. शास्त्रों विद्वानों के अनुसार विद्या-संगीत की शिक्षा का प्रारंभ देवी सरस्वती की पूजा-प्रार्थना से ही करने का आस्था, विश्वास, श्रद्धा से जुड़ा विधान है.
बसंत पंचमी पर भगवान विष्णु की पूजा का विधान
बसंत पंचमी के दिन भगवान श्री विष्णु की पूजा का विधान भी है. सुबह तेल-उबटन लगाकर स्नान कर, पवित्र वस्त्र धारण कर भगवान नारायण का विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए. इसके बाद पितृ-तर्पण तथा ब्रह्मभोजन का भी विधान है. इस दिन मंदिरों में भगवान की प्रतिमा का बसंती वस्त्रों, पुष्पों से श्रृंगार किया जाता है तथा भजन-गीतों के साथ उत्सव मनाया जाता है.
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