Ramayan : रामायण के अनुसार भगवान राम को वनवास हुआ तो उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से शुरू करते हुए भारत के अंतिम छोर रामेश्वरम और इसके बाद लंका में रावण वध के साथ पूरी की. इस दौरान उनके साथ घटी घटनाओं के 200 से अधिक स्थलों की पहचान हो चुकी है, इसमें एक कोडीकरई जगह है. हनुमान, सुग्रीव से मुलाकात कर श्रीराम ने ऋष्यमूक पर्वत पर वानर सेना बुलाई और लंका की ओर चल पड़े. आगे चलकर कोडीराई में श्रीरामजी ने फिर वानर सेना का गठन किया. कोडीकरई में श्रीराम की सेना ने पड़ाव डाला और सभी सेना नायकों के साथ विचार विमर्श कर अलग-अलग सेनानायकों को जिम्मेदारी बांटी गई. श्री राम की सेना ने सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता. यह जगह पुल बनाने के लिए भी उचित नहीं है. इसके बाद श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया.


नाराज रामजी समुद्र सुखाने जा रहे थे


सेतु के लिए समुद्र में डाले जाने वाले पत्थर डूबने लगे तो रामजी ने सागर से प्रार्थना की. मगर समुद्र ने प्रार्थना नहीं सुनी तो इससे रामजी क्रोधित हो गए और उन्होंने सागर को सुखाने के लिए ज्यों ही दिव्य वाण को धनुष पर चढ़ाया तो सागर भगवान राम के चरणों में आ गिरे और क्षमा मांगी


जीत के बाद धनुष से सेतु को तोड़ दिया


धर्मग्रथों के अनुसार रावण के भाई, विभीषण के अनुरोध पर राम ने धनुष के एक सिरे से सेतु तोड़ दिया, जिससे नाम धनुषकोडी पड़ा. कहा जाता है कि राम ने प्रसिद्ध धनुष के एक छोर से सेतु के लिए इस स्थान को चिह्नित किया. मान्यताओं के हिसाब से यह पुल 5 दिन में तैयार हो गया था. कहा जाता है कि पहले दिन 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवें दिन 23 योजन का कार्य पूरा किया गया था.


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