Mahabharat : युद्ध से पहले 17 दिन की तीर्थयात्रा पर इसलिए गए बलराम
बड़े भाई बलदाऊ बलराम शुरुआत से कृष्ण को युद्ध से दूर रहने की सलाह देते रहे और कृष्ण के इनकार करने पर वह नाराज होकर युद्ध से ठीक पहले 17 दिन की तीर्थयात्रा पर हिमालय चले गए.
Mahabharat : महाभारत युद्ध की कहानी लगभग हर कोई जानता है, लेकिन इस महाकाव्य के कुछ ऐसे पहलू भी हैं, जिनके बारे में बेहद कम लोग जानते हैं, जैसे महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम क्यों नहीं शामिल हुए, जबकि इस महायुद्ध में देश-विदेश की सेनाओं ने भाग लिया था. माना जाता है कि कौरवों के साथ कृष्ण की सेना समेत कई जगहों के योद्धा पांडवों के खिलाफ लड़े, वहीं पांडवों के साथ निहत्थे कृष्ण और उनके मित्र राजाओं की सेना थी. मगर युद्ध में दो राजा बलराम और भोजकट के राजा और रुक्मणि के बड़े भाई रुक्मी नहीं शामिल हुए. बलराम जी खुद श्रीकृष्ण के युद्ध में शामिल होने का विरोध करते रहे और ऐन समय पर द्वारिका छोड़कर तीर्थयात्रा पर निकल गए.
बलरामजी ने भगवान कृष्ण को समझाया था कि हमें युद्ध में शामिल नहीं होना चाहिए. दुर्योधन और अर्जुन दोनों ही हमारे मित्र हैं. ऐसे धर्मसंकट के समय दोनों का पक्ष न लेना उचित होगा. इस धर्मसंकट का कृष्ण ने हल निकाल लिया. उन्होंने दुर्योधन को उनमें और सेना में एक चुनने का मौका दिया तो दुर्योधन ने कृष्ण की सेना चुन ली.
पौराणिक कथाओं के अनुसार जिस समय युद्ध की तैयारी चल रही थी. एक दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम पांडवों की छावनी में अचानक आ गए. दाऊ भैया को देख श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर आदि बेहद खुश हुए उनका आदर अभिवादन किया. इसके बाद बलराम ने धर्मराज के पास बैठकर कहा कि मैंने कृष्ण को न जाने कितनी बार समझाया कि हमारे लिए पांडव और कौरव दोनों समान हैं।
दोनों को मूर्खता करने की सूझी है. तो हमें बीच में पड़ने की जरूरत नहीं है, मगर कृष्ण ने मेरी एक नहीं मानी. कृष्ण को अर्जुन के प्रति स्नेह इतना है कि वे कौरवों के विपक्ष में हैं. मगर अब जिस तरफ कृष्ण हों, उसके विपक्ष में कैसे जाऊं? भीम और दुर्योधन दोनों ने ही मुझसे गदा सीखी है. दोनों ही मेरे शिष्य हैं. दोनों पर मेरा समान स्नेह है. इन दोनों कुरुवंशियों को आपस में लड़ते देखकर अच्छा नहीं लगता, मेरा इस समय तीर्थयात्रा पर जाना ही श्रेयकर होगा. इतना कहकर बलराम चले गए.
दुर्योधन की जंघा पर वार को बताया था गलत
युद्धकाल के अंतिम दिन जब भीम दुर्योंधन को मल्ल युद्ध के दौरान गदे से जंघा पर वार कर तोड़ देते हैं, उसी दौरान बलरामजी पहुंचकर बेहद नाराज होते हें, वह जंघा पर गदा के प्रहार को नियमों से अनुचित बतात हैं और भीम की सिखाई गदा शिक्षा के अनुचित पालन के लिए नाराजगी जताई.
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