Bhadrapad Purnima Katha: सनातन धर्म (Snatan Dharma) में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है. आज के दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा (Satyanarayan Puja) की जाती है. साथ ही, उमा-महेश्वर व्रत (Uma Maheshwar Vrat) भी रखा जाता है. आज 20 सितंबर को भादो पूर्णिमा (Bhado Purnima) है. आज से ही पितृपक्ष (Pitru Paksha) की शुरुआत होती है. भादो पूर्णिमा से शुरु होकर अश्विन अमावस्या (Ashwin Amavasya) तक पितृपक्ष चलते हैं. 6 अक्टूबर को पितृपक्ष का समापन होगा. आज पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है, इसलिए इस दिन व्रत रखा जाता है और चंद्रमा की विशेष उपासना की जाती है.
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण की कथा (Satyanarayan Katha) सुनने का भी विशेष महत्व है. पौराणिक कथाओं के अनुसार आज के दिन सत्यनारायण की कथा सुनने से सभी कष्टों का नाश होता है. वहीं, नारद पुराण के अनुसार आज के दिन उमा-महेश्वर का व्रत भी रखा जाता है. आज के दिन किसी पवित्र नदी में स्नान आदि करने का भी विशेष महत्व है. इस दिन व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और संतान सुख की प्राप्ति होती है.
Bhadrapad/bhado Purnima Shubh Muhurat (भाद्रपद पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त)
पूर्णिमा तिथि की आरंभ: 20 सितंबर 2021 सोमवार, 05:28 ए एम से
पूर्णिमा का समापनः 21 सितंबर 2021 मंगलवार, 5:24 ए एम तक
Bhado Purnima Vrat Katha (भादो पूर्णिमा व्रत कथा)
पौराणिक ग्रंथों में भाद्रपद पूर्णिमा की कथा का उल्लेख मिलता है. श्री कृष्ण ने एक बार मां यशोदा को ऐसे व्रत की कहानी विस्तार में बताई जिसके करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इसके लिए स्त्रियों को 32 पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए. यह व्रत यहां एक ओर अचल सौभाग्य देने वाला है, वहीं भगवान शिव के प्रति मनुष्य की भक्ति भी बढ़ती है. श्रीकृष्ण ने आगे कहानी बताते हुए बताया कि एक कार्तिका नाम की नगर में चंद्रहास नाम का राजा राज करता था. उसी नगरी में एक ब्राह्मण धनेश्वर रहा करता था, उसकी सुंदर और सुशील पत्नी थी, जिसका नाम रूपवती था. उनके घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी, लेकिन संतान न होने के कारण वह अकसर चितिंत रहते थे.
एक दिन की बात है एक योगी उस नगरी में आया और उसने धनेश्वर का घर छोड़कर सभी घरों से भिक्षा मांगी. भिक्षा लेकर वे योगी गंगा के किनारे बैठकर प्रेमपूर्वक खाने लगा, तभी दुखी होकर धनेश्वर ने योगी से भिक्षा न लेने की वजह पूछी. इस बात पर योगी ने कहा कि निसंतान के घर की भीख पतिथों के अन्न के समान होती है और जो पतिथों का अन्न ग्रहण करता है वे भी पतिथ हो जाता है. इसलिए इस भय से उनके घर की भीक्षा नहीं लेता.
योगी की बात सुनकर धनेश्वर बहुत दुखी हो गए और उन्होंने योगी से पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछा. योगी ने उन्हें चंडी की उपासना करने की सलाह दी. योगी की बात सुनते ही धनेश्वर देवी चंडी की उपासना करने के लिए वन में चला गया. 16 वें दिन धनेश्वर की उपासना से प्रसन्न होकर देवी चंडी ने उसे दर्शन दिया और पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया. लेकिन साथ ही ये भी कहा कि वे केवल 16 वर्षों तक ही जीवित रहेगा. लेकिन 32 पूर्णिमा का व्रत रख कर उसे दीर्घायु किया जा सकता है. लेकिन स्त्री और पुरुष दोनों को ही व्रत रखने होंगे. इसके बाद देवी ने कहा कि ये आम के वृक्ष पर से फल तोड़कर घर ले जाएं और पत्नी को सारी बात बताएं. तथा स्नान कर वह शंकर भगवान का ध्यान कर उस फल को खा लें. भगवान शिव की कृपा से वह गर्भवती हो जाएगी. इस व्रत को करने के बाद धनेश्वर और रूपवती को पुत्र की प्राप्ति हुई और 32 पूर्णिमा का व्रत रखने से पुत्र को दीर्घायु प्राप्त हुई.
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