आज रखा जाएगा भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत, इस विधि से पूजन करने से सफल होगी पूजा, मनोकामनाएं होंगी पूर्ण
हिंदू धर्म में चतुर्थी तिथि पर गणेश पूजन का विधान है. माह में दो चतुर्थी पड़ती हैं. कृष्ण पक्ष को संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है.
हिंदू धर्म में चतुर्थी तिथि पर गणेश पूजन का विधान है. माह में दो चतुर्थी पड़ती हैं. कृष्ण पक्ष को संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. गणपति की कृपा पाने के लिए इस दिन पूजा-अर्चना और उनकी उपासना की जाती है. चतुर्थी व्रत करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. हर माह में आने वाली चतुर्थी का अलग महत्व होता है.
चैत्र माह में पड़ने वाली चतुर्थी भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. इस बार संकष्टी चतुर्थी 21 मार्च सोमवार को पड़ रही है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान गणेश अपने भक्तों की सभी कष्ट और बाधाएं दूर करते हैं. आइए जानते हैं गणपति को प्रसन्न करने के लिए भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी की पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में.
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त 2022
संकष्टी चतुर्थी तिथि- भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 21 मार्च सोमवार के दिन पड़ रही है.
शुभ मुहुर्त- 21 मार्च सुबह 8:20 से 22 मार्च सुबह 6:24 बजे तक, वहीं चन्द्रोदय- रात 8 बजकर 23 पर होगा.
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत पूजन विधि
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह उठने के बाद नित्य कर्मों से निव्रित होकर स्ना आदि करें और स्वस्थ वस्त्र धारण करें. इस दिन भगवान गणेश जी की पूजा का संकल्प लें और विधि पूर्वक उनकी पूजा-अर्चन करें. उन्हें तिल, गुड़, लड्डू, दुर्वा, चंदन और मोदक अर्पित करें. पूजन के बाद गणेश जी की आरती करें. दिनभर उपवास रखें. रात में चांद निकलने से पहले गणेश भगवान की पूजा करें और चंद्रमा को अर्घ्य देते हुए व्रत पारण करें.
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी महत्व
गौरी पुत्र गणेश जी को सर्वप्रथम पूजनीय स्थान प्राप्त है. किसी भी शुभ और मांगलिक कार्य से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है. विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता गणेश जी का वर्त चतुर्थी के दिन सच्चे मन और पूरी श्रद्धा से रखने पर भक्तों की सभी बाधाएं दूर होती हैं. ऐसा माना जाता है कि गणपति बप्पा की पूजा अर्चना से यश, धन, वैभव और अच्छी सेहत प्राप्त होती है. चतुर्थी के दिनभर उपवास रखकर चंद्र दर्शन के बाद ही व्रत खोला जाता है. ऐसा करने से गणपति प्रसन्न होकर उनके संकटों को दूर करते हैं.
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