Ramakrishna Paramahamsa: भारत के महान संत रामकृष्ण परमहंस ने क्यों कहा जो बार-बार ‘मैं पापी हूं, मैं पापी हूं’ वो वाकई पापी बन जाता है
Ramakrishna Paramahamsa: रामकृष्ण परमहंस भारत के महान संत, आध्यात्मिक गुरु और विचारक के रूप में जाने जाते हैं. वे मां काली के भक्त थे. कहा जाता है कि उन्हें देवी काली के साक्षात दर्शन होते थे.
Bharat Gaurav, Ramakrishna Paramahamsa: श्री रामकृष्ण परमहंस का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था. उनका जन्म 18 फरवरी 1836 को बंगाल प्रांत में स्थित कामारपुकुर गांव में हुआ था. उन्हें भारत के महानतम संतों में एक माना जाता है. उन्हें ईश्वरीय शक्ति के प्रति गहरी श्रद्धा थी और वे मां काली के भक्त थे.
कम उम्र में रामकृष्ण परमहंस का झुकाव आध्यात्म और धार्मिकता की ओर हुआ. वे गुरुओं, ऋषियों और पुजारियों से लोक-परलोक, देवी-देवता, रामायण, महाभारत और पुराणों समेत अन्य धार्मिक ग्रंथों को सुनते थे.
रामकृष्ण परमहंस ने अपना संपूर्ण जीवन ईश्वर की भक्ति और कठोर साधना में व्यतीत किया. स्वामी विवेकानंद भी उनके शिष्य रह चुके हैं. विवेकानंद ने उनसे जीवन की कई गूढ़ रहस्यों और ज्ञान की बातों को जाना. जानते हैं रामकृष्ण परमहंस के कुछ अनमोल वचन और उपदेशों के बारे में.
रामकृष्ण परमहंस के अनमोल उपदेश (Ramkrishna Paramhansa Quotes)
- तुम रात को आसमान में बहुत सारे तारों को देखते हो लेकिन सूर्य निकलने के बाद तारे दिखाई नहीं पड़ते हैं. इसे क्या कहोगे तुम कि दिन में आसमान में तारे नहीं होते? सिर्फ इसलिए क्योंकि तुम उसे देख नहीं पा रहे हो. इसलिए अपने अज्ञान की वजह से भगवान को देख नहीं पाते तो ये मत कहो कि भगवान जैसी कोई चीज है ही नहीं.
- भगवान की कृपा से हवा तो हमेशा ही बह रही है, ये हमारे हाथ में है कि हम अपनी नाव की पाल चढ़ायें और ईश्वर की कृपा की दिशा की ओर बढ़ जायें.
- मनुष्य तकिये की खोल (कवर) जैसा है. एक कवर का रंग लाल है, दूसरे का नीला और तीसरे का रंग काला है. लेकिन सबके अंदर रुई तो वही भरी हुई है. ठीक इसी तरह मनुष्यों में कोई एक सुंदर है, दूसरा बदसूरत है, तीसरा साधु है तो चौथा दुष्ट है, लेकिन ईश्वर के तत्व सभी के भीतर है.
- बरसात का पानी ऊंची जमीन पर भी नहीं टिकता, वो बहकर नीचे ही आता है. जो विनम्र और सच्चे हैं उनपर ईश्वर की दया बनी रहती है लेकिन अहंकारी और दंभी लोगों पर यह अधिक देर तक नहीं टिक पाती.
- मन ही व्यक्ति को बांधता है और मन ही उसे मुक्त करता है. जो पक्के दृढ़ विश्वास से कहता है ‘मैं बंधा हुआ नहीं हूं, मैं मुक्त हूं’ वह मुक्त हो जाता है. वह मूर्ख है जो हमेशा रटता रहता है ‘मैं बंधन में हूं, मैं बंधा हुआ हू’ वह हमेशा वैसा ही रह जाता है. ठीक ऐसी ही जो बार-बार दिन और रात ये रटता रहता है, ‘मैं पापी हूँ, मैं पापी हूं, वह वाकई पापी ही बन जाता है.
- जो व्यक्ति दूसरों की बिना किसी भी स्वार्थपूर्ण उद्देश्य से मदद करता है, वह असल में खुद के लिए अच्छे का निर्माण कर रहा होता है.
- अगर किसी सफेद कपड़े में छोटा सा भी दाग लग जाए, तो वह दाग देखने में बहुत बुरा लगता है. ठीक इसी तरह किसी साधु का छोटे से छोटा दोष भी बहुत बड़ा प्रतीत होता है.
- शक्कर और रेत को साथ मिला दिया जाए तो चींटी रेत के कण को छोड़ देती है और शक्कर के दाने बीन लेती है. ठीक इसी तरह एक संत बुरे लोगों में भी उसकी अच्छाइयों को ही ग्रहण करते हैं.
- अगर दाद रोग की जगह खुजलाओ तो अच्छा लगता है, लेकिन खुजलाने के बाद वहां दर्द और जलन तेज हो जाती है. इसी तरह संसार के सुख भी शुरू में बड़े आकर्षक लगते हैं, परंतु उसके परिणाम भयानक और सहन करने में कष्टकारी होते हैं.
- अगर एक बार गोता लगाने से तुम्हें मोती न मिले, तो तुम्हें ये निष्कर्ष कभी नहीं निकालना चाहिए कि समुद्र में रत्न नहीं होते हैं.
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