Bharat Gaurav, Swami Vivekananda Speech in Chicago: स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को बंगाल के कोलकाता में एक बंगाली परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और मां का नाम भुवनेश्वरी देवी था. स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था, लेकिन आगे चलकर वे स्वामी विवेकानंद के नाम से मशहूर हुए.


स्वामी विवेकानंद को धर्म, विज्ञान, कला, दर्शन, सामाजिक और साहित्य का ज्ञाता कहा जाता है. आज भी उनके विचारों से युवाओं को प्रेरणा मिलती है. हर साल 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती के दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है. जब भी स्वामी विवेकानंद की बात आती है तो अमेरिका के शिकागो में दिए उनके भाषण का जिक्र जरूर किया जाता है.


स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1983 को शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में भाषण देकर दुनियाभर में भारत की मजबूत छवि पेश की थी. इस भाषण को 130 साल हो चुके हैं, लेकिन आज भी स्वामी जी के इस ऐतिहासिक भाषण की चर्चा होती है. इतना ही नहीं स्वामी जी के भाषण के बाद ऑडियंस की ओर से स्टैंडिंग ओवेशन भी मिला था और पूरे 2 मिनट तक तालियां बजती रहीं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण में क्या था?


आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो  में विवेकानंद के भाषण की खास बातें



  • स्वामी विवेकानंद ने भाषण की शुरुआत में कहा, मेरे अमरीकी भाइयों और बहनों आपने स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है, जिससे मेरा दिल भर आया. मैं दुनिया की पुरानी संत-परंपरा और सभी धर्मों की जननी की ओर से धन्यवाद देता हूं. सभी जातियों और संप्रदायों के हिंदुओं की ओर से आभार व्यक्त करता हूं.

  • मुझे इस बात का गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया और हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं.

  • मुझे इस बात का भी गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों के लोगों को शरण दी.

  • अपने भाषण में विवेकानंद कहते हैं, ‘जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिलती है. ठीक उसी तरह मनुष्य भी अपनी इच्छा से अलग रास्ते चुनता है. ये रास्ते दिखने में भले ही अलग-अलग लगती हैं लेकिन ये सभी ईश्वर तक ही जाती है.’

  • वर्तमान सम्मेलन जोकि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, वह अपने आप में गीता में कहे गए इस उपदेश इसका प्रमाण है, 'जो भी मुझ तक आता है, चाहे कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं. लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं, परेशानियां झेलते हैं लेकिन आखिर में मुझ तक पहुंचते हैं.’

  • सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है और इसे हिंसा से भर दिया है. जाने कितनी बार यह धरती रक्त से लाल हो चुकी है और न जाने कितनी सभ्याताएं तबाह हुई और कितने देश मिटा दिए गए.

  • ये खौफनाक राक्षस न होते तो मानव समाज कहीं बेहतर होता. लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है और मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन का बिगुल सभी तरह की कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश करने वाला साबित होगा. फिर चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम की धार से.


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