Bhaum Pradosh Vrat 2021: हिंदू धर्म में चतुर्मास में प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2021) का अत्यंत महत्व है. कहते हैं इन चार माह में भगवान शिव (Bhagwan Shiva) को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) और मासिक शिवरात्रि का व्रत (Masik Shivratri Vrat 2021) रखना चाहिए. कार्तिक मास का पहला प्रदोष व्रत 2 नवंबर, मंगलवार (Kartik Maah Pradosh Vrat) के दिन पड़ रहा है. मंगलवार के दिन होने के कारण इसे भौम प्रदोष व्रत (Bhaum Pradosh Vrat 2021) कहा जाएगा. भौम प्रदोष व्रत में भगवान शिव के साथ-साथ हनुमान जी (Hanuman Ji) का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना विधि-पूर्वक और नियम बद्ध होकर करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. और सारे कष्टों से छुटकारा मिलता है. इतना ही नहीं, पद-प्रतिष्ठा और मान-सम्मान में भी वृद्धि होती है. आइए जानते हैं भौम प्रदोष व्रत में व्रतधारी को व्रत के दिन क्या खाना चाहिए और क्या नहीं. इन नियमों का पालन करने से व्रतधारी को पूरा फल मिलता है.
भौम प्रदोष व्रत में क्या खाएं? (What To Eat in Pradosh Vrat)
मान्यता है कि प्रदोष व्रत अगर निर्जला रखा जाए तो उत्तम फलदायक होता है. परंतु अपने सामर्थ्य अनुसार प्रदोष व्रत फलाहारी भी रखा जा सकता है. ऐसे में व्रतधारी को सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इसके बाद भगवान शिव की उपासना करें. व्रत के दौरान दूध ग्रहण कर सकते हैं. इसके बाद पूरे दिन व्रत का पालन करते हुए शाम को प्रदोष काल में पुनः शिवशंकर और माता पार्वती की विधि-विधान पूर्वक पूजा उपासना करें. कहते हैं प्रदोष काल में पूजन से पहले एक बार पुनः स्नान कर लेना चाहिए. पूजन के बाद ही भोजन ग्रहण करें.
जो लोग कमजोर या दुर्बल हैं, वे दिन में व्रत के दौरान केवल एक बार फलाहार कर सकते हैं. बार-बार फलाहार करके मुंह को झूठा न करें. ऐसा करने से व्रत भंग हो जाता है. प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का ही सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग पृथ्वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है.
भौम प्रदोष व्रत में क्या न खाएं? (What to Not Eat In Pradosh Vrat)
प्रदोष व्रत में लाल मिर्च, अन्न, चावल और सादा नमक नहीं खाना चाहिए. ऐसा करने से व्रत का फल नहीं मिलता.
प्रदोष व्रत पूजा विधि (Pradosh Vrat Puja Vidhi)
भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए इस प्रदोष व्रत के दिन सुबह स्नान करने के बाद पूजा स्थान को शुद्ध करें. इसके बाद भगवान के सामने बैठ कर व्रत का संकल्प लें और पूजा प्रारंभ करें. मान्यता है कि इस दिन निर्जला व्रत रखना विशेष फलदायी माना गया है. कहते हैं कि प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में ही करनी चाहिए. शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव और पार्वती की विशेष पूजा करें. सूर्यास्त के बाद एक बार फिर से स्नान करें और फिर पूजा करें. इसके बाद ही व्रत का पारण करें.