Mahabharat: मगध सम्राट जरासंध राजा बृहद्रथ का पुत्र था. इसके पास सबसे विशाल सेना थी और वह बेहद क्रूर-अत्याचारी भी था. हरिवंशपुराण अनुसार चक्रवर्ती बनने के लिए काशी, कौशल, चेदि, मालवा, विदेह, अंग, वंग, कलिंग, पांडय, सौबिर, मद्र, कश्मीर और गांधार के राजाओं को परास्त कर अधीन कर लिया था. इसके अलावा शिशुपाल, असम के राजा भगदन्त मद्र नरेश शल्य, यवन नरेश कालयवन को भी मित्र बनाए रखने से पूरे भारत पर उसका दबदबा था. जरासंघ कृष्ण का मामा कंस का ससुर था. कंस ने उसकी दो पुत्रियों 'अस्ति' और 'प्राप्ति' से विवाह किया था.
जन्म की भी अनूठी कहानी
जरासंध के जन्म की अनूठी कहानी प्रचलित है. कहा जाता है कि मगध के सम्राट बृहद्रथ के दो पत्नियां थीं. दोनों से कोई संतान नहीं हुई तो एक दिन वे महात्मा चण्डकौशिक के पास गए. चण्डकौशिक ने एक फल देकर कहा कि इसे पत्नी को खिला देंगे तो संतान प्राप्त हो जाएगी. बृहद्रथ ने फल काटा और दोनों ही पत्नियों को खिला दिया. फल लेते समय राजा यह पूछना भूल गए कि उसे दोनों पत्नियों को खिलाना था या एक को. इधर फल खाने से दोनों पत्नियां गर्भवती हो गईं, लेकिन शिशु जन्मा तो वह आधा-आधा था, यानी आधा पहली रानी के गर्भ से और दूसरा आधा दूसरी रानी से. डर के मारे दोनों रानियों ने शिशु के दोनों जीवित टुकड़े को फिंकवा दिए. तभी वहां से एक राक्षसी गुजरी, जिसने जीवित शिशु के दो टुकड़े देखकर अपनी माया से उन्हें जोड़ दिया. इससे शिशु एक हो गया और तेज आवाज में रोने लगा. आवाज सुनकर रानियां बाहर निकलीं और राक्षसी के हाथ में बालक देखकर हैरान रह गईं. एक रानी ने बच्चे को गोद में ले लिया, तभी वहां राजा बृहद्रथ आ गए. उन्होंने राक्षसी से परिचय पूछा तो उसने सारी कहानी बयां कर दी. राक्षसी ने अपना नाम जरा बताया, उससे खुश होकर राजा ने बालक का नाम उसके नाम पर ही जरासंध रख दिया.
तेरह दिन जूझते रहे भीम
जरासंध की खासियत थी कि वह युद्ध में मरता नहीं था. उसे अक्सर मल्ल युद्ध या द्वंद्व युद्ध लड़ने का शौक था. कट्टर शत्रु होने के चलते श्रीकृष्ण ने उसके वध की योजना बनाई. भीम और अर्जुन ब्राह्मण के साथ तपस्वी वेष में वह जरासंध के पास पहुंचे और कुश्ती के लिए ललकारा. मगर जरासंध समझ गया तो कृष्ण ने वास्तविक परिचय दिया. कुछ सोचकर जरासंध ने भीम से कुश्ती लड़ना तय किया. अखाड़े में जरासंध और भीम का युद्ध कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से 13 दिन तक लगातार चला. इस दौरान भीम ने जरासंध को जांघ से उखाड़कर कई बार दो टुकड़े कर दिए, लेकिन हर बार जुड़कर वह फिर जिंदा हो जाता और फिर से भीम पर टूट पड़ता. भीम थककर बेदम हो गए तो 14वें दिन कृष्ण ने एक तिनके को बीच से तोड़कर दोनों भाग विपरीत दिशाओं में फेंक दिया. भीम यह इशारा समझ गए और उन्होंने जरासंध को दोफाड़ कर एक टुकड़ा एक दिशा में और दूसरा दूसरी दिशा में फेंक दिया. इसके चलते वह जुड़ नहीं पाया और उसका अंत हो गया. जरासंध के पुत्र सहदेव को अभयदान देकर मगध का राजा बना दिया गया.
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