Bhishma Ashtami : माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म अष्टमी कहते हैं. बाल ब्रह्मचारी भीष्म पितामह की मृत्यु इस तिथि को हुई थी. महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ते हुए पितामह भीष्म अर्जुन के बाणों से घायल होकर वीरगति को प्राप्त हुए थे. जब उनको बाण लगा था, तब सूर्य दक्षिणायन थे. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो लोग उत्तरायण में अपने प्राण त्यागते हैं, उनको जीवन-मृत्यु के चक्र से छुटकारा मिल जाता है, वह मोक्ष को प्राप्त करते हैं. सूर्य देव मकर संक्रांति के दिन उत्तरायण होते हैं और पितामह भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था. इसलिए सूर्य के उत्तरायण होने के बाद माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को इन्होंने अपने प्राण त्याग दिए थे. वह दृढ़ निश्चयी, गंभीर तथा निर्मल प्रकृति के थे. इस दिन भीष्म पितामह के निमित्त तिलों के साथ तर्पण तथा श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को संतान की प्राप्ति होती है. पद्म पुराण के अनुसार जीवित पिता वाले व्यक्ति को भी इस दिन भीष्म पितामह के लिये तर्पण करना चाहिए. आइए जानते हैं किस कथा का वाचन करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती है?
व्रत की कथा
राजा शांतनु की पटरानी गंगा की कोख से भीष्म (गांगेय) का जन्म हुआ था. एक बार शांतनु शिकार खेलने बहुत दूर निकल गये. वहां से लौटने के लिये गंगा पार करनी थी. केवट हरिदास की अनुपस्थिति में उसकी पुत्री मत्स्यगंधा ने राजा शांतनु को नौका में बैठकर गंगा पार करायी. मत्स्यगंधा को केवट ने पाला था. वह उसका जन्मदाता नहीं था. राजा तनु ने मत्स्यगंधा के रूप- सौंदर्य पर मुग्ध होकर केवट के समक्ष उसके साथ विवाह का प्रस्ताव रख दिया. केवट ने राजा के सामने शर्त रखी कि उसकी बेटी का पुत्र ही राजा बनेगा. यदि राजा को यह शर्त मंजूर हो तभी वह अपनी बेटी की शादी राजा के साथ करेगा. राजा यह शर्त मंजूर न कर सके. वह घर लौट आये. घर आकर राजा व्याकुल रहने लगे, उनके चेहरे पर हर समय उदासी छाई रहती. एक दिन राजकुमार भीष्म (गांगेय) ने पिता से उनकी उदासी का कारण पूछा.
महाराज ने उन्हें टाल दिया. एक दिन उनके मंत्री से भीष्म को उनकी उदासी का कारण पता चल गया. यह पता चलते ही भीष्म (गांगेय) स्वयं केवट के पास गये. उन्होंने उसके सामने गंगा जी में प्रवेश करके आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा की तथा उसकी बेटी मत्स्यगंधा के पुत्र को ही राजा का उत्तराधिकारी बनाने की प्रतिज्ञा ली, उनकी इसी प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम भीष्म पड़ा. उनका वास्तविक नाम गांगेय था. भीष्म की इस प्रतिज्ञा के बाद केवट ने मत्स्यगंधा का विवाह राजा शांतनु से कर दिया. राजा शांतनु ने प्रसन्न होकर भीष्म को वरदान दिया कि तुम अपनी इच्छा के बिना प्राण नहीं त्याग नहीं सकते. भीष्म पितामह ने कौरव - पांडवों के युद्ध में दुर्योधन का साथ न चाहते हुये भी दिया था. अर्जुन के बाणों से बांध कर वह शर शैय्या पर छः माह लेटे रहे थे क्योंकि वे चाहते थे कि उनकी मृत्यु के समय सूर्य उत्तरायण हो. महाभारत के युद्ध की समाप्ति पर जब सूर्य देवता दक्षिणायन से उत्तरायण हुये तब उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया. वह दिन माघ शुक्ल अष्टमी का ही था. अतः यह दिन उनकी पावन स्मृति में उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
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