Buddha Amritwani: जन्म-जन्मांतर तक भुगतना पड़ता है पापों का फल, बुद्ध से जानिए भिक्षु चक्षुपाल के पूर्व जन्म की कहानी
Buddha Amritwani:बुद्ध का जन्म ऐसे काल में हुआ जब समाज में कई प्रकार की कुरीतियां थीं. उन्होंने अपने विचार, ज्ञान, अहिंसा, प्रेम, शांति, संदेश और त्याग से समाज की कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया.
Gautam Buddha Amritwani in Hindi: महात्मा गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक थे, जिन्होंने दिव्य ज्ञान को प्राप्त कर पूरे संसार को शांति और अहिंसा का मार्ग दिखाया. बुद्ध का जन्म ऐसे काल में हुआ जब देश अंशाति, छुआ-छूत और अंधविश्वास की बेड़ियों में जकड़ा था.
गौतम बुद्ध ने अहिंसा, प्रेम, सद्भावना, शांति, त्याग और समर्पण से समाज की इसी कुरीतियों को दूर किया. इस तरह वे सिद्धार्थ गौतम से महात्मा बुद्ध कहलाएं. बुद्ध से जुड़ी कई कहानियां मिलती है, जिससे आपको जीवन की सीख मिलेगी.
बुद्ध और चक्षुपाल की प्रेरणादायक कहानी
एक बार महात्मा गौतम बुद्ध जेतवन विहार में थे. तब भिक्षु चक्षुपाल उनसे मिलने के लिए आए हुए थे. चक्षुपाल के आने की खबर सुनते ही उनके दिनचर्या, व्यवहार और गुण आदि की चर्चाएं शुरू हो गई. भिक्षु चक्षुपाल नेत्रहीन थे.
जब भिक्षु चक्षुपाल जेतवन विहार आए तो एक दिन बुद्ध के कुछ भिक्षुओं ने कुछ मरे हुए कीड़ों को चक्षुपाल की कुटी के बाहर पाया. इसके बाद उन्होंने चक्षुपाल की निंदा करनी शुरू कर दी. भिक्षु कहने लगे ही उसने इन जीवित प्राणियों की हत्या की है. तब भगवान बुद्ध ने निंदा करने वाले सभी भिक्षुओं को बुलाया. बुद्ध ने पूछा कि क्या तुमलोगों ने भिक्षु चक्षुपाल को इन कीड़ों को मारते हुए देखा है. भिक्षुओं ने नहीं में उत्तर दिया.
तब भगवान बुद्ध ने उनसे कहा कि, जैसे तुमने चक्षुपाल को कीड़ों को मारते हुए नहीं देखा ठीक वैसे ही चक्षुपाल ने भी कभी उन कीड़ों को मरते हुए नहीं देखा. चक्षुपाल ने उन कीड़ों को जान बूझकर नहीं मारा है. इसलिए ऐसे में उनकी निंदा या भर्त्सना करना बिल्कुल उचित नहीं है. तब भिक्षुओं ने बुद्ध से पूछा कि भिक्षु चक्षुपाल अंधे कैसे हुए? क्या उन्होंने इस जन्म में या फिर पिछले जन्म में कोई पाप किए थे.
बुद्ध ने भिक्षुकों को चक्षुपाल के बारे में बताते हुए कहा कि, वो पूर्व जन्म में एक चिकित्सक थे. एक नेत्रहीन स्त्री सभी जगह चिकित्सा करवाकर हार चुकी थी. कोई उसके आंखों को ठीक नहीं कर सका. तब उसने चक्षुपाल से अपने नेत्रों की चिकित्सा कराई और उसने चक्षुपाल को यह वचन दिया था कि यदि वो उसकी आंखों की रोशनी लौटा देंगे तो वो और उसका पूरा परिवार भिक्षु चक्षुपाल के दास बन जाएंगे. चक्षुपाल की चिकित्सा से उस स्त्री की आंखें बिल्कुल ठीक हो गई. लेकिन अंत में उसने दासी बनने के भय से अपने द्वारा किए वादे को मानने से इंकार कर दिया.
चक्षुपाल जोकि चिकित्सक थे, उन्हें तो यह पता था कि उस स्त्री की आंखें ठीक हो गई हैं और वह झूठ बोल रही है. लेकिन उसे सबक सिखाने के लिए और बदला लेने के लिए चक्षुपाल ने जानबूझ कर उसे ऐसी दवा दे दी जिससे कि उस दवा से वह महिला फिर से अंधी हो गई. उस महिला को अपने किए पर पश्चाताप भी हुआ वह बहुत रोई-पीटी. लेकिन फिर भी चक्षुपाल को उसपर जरा भी दया नहीं आई और इसी पाप के फलस्वरूप अगले जन्म यानी इस जन्म में चक्षुपाल अंधा बनना पड़ा.
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