Buddha Amritwani, Gautam Buddha Story: मन (Mind) बहुत चंचल होता है, इसलिए वह अशांत रहता है और मन में जबतक अशांति रहेगी, व्यक्ति हजारों सवालों से घिरा रहेगा. व्यक्ति को जबतक मन में चल रही सवालों के जवाब नहीं मिलेंगे, उसका मन अशांत ही रहेगा. लेकिन मुख्य प्रश्न यह है कि मन को नियंत्रित कैसे किया जाए और मन को कैसे समझा जाए?


गौतम बुद्ध की इस कहानी में उन्होंने मन को जानने के लिए 6 चरणों के बारे में बताया गया है. शुरुआती 5 चरणों को जाने बिना आप मन को नहीं समझ सकते हैं. जानते हैं इस कहानी के बारे में.


मन को जानने से जुड़ी गौतम बुद्ध की कहानी


एक बार एक व्यक्ति गौतम बुद्ध के पास गया और पूछा कि, मन को नियंत्रति करने का पहला चरण क्या है? बुद्ध कहते हैं- अपने मन को समझने का पहला चरण है, इसके द्वारा दिए गए लालच की व्यर्थता को देखना. क्योंकि जब मन अंशात होता है तो कई तरह के लालच देता है, जिसने मन द्वारा दिए इन लालचों को पहचान लिया, उसने मन को समझ लिया. फिर व्यक्ति बुद्ध से पूछता है, लेकिन हमें यह कैसे पता चलेगा हमारा मन हमें लालच दे रहा है और वह लालच व्यर्थ है? इसका जवाब देते हुए बुद्ध कहते हैं- ‘अनुभव से.’


मनुष्य मन के लालच से जिस कार्य को अतिपूर्वक करता है, उसमें उसे हानि ही होती है और हानि के बाद ही उसे अनुभव भी होता है. जैसे, जिसने वास्तव में यह देख लिया की नशा करना केवल दुख है, वह नशा मुक्त होना शुरू कर देगा, जिसने जान लिया कि ईर्ष्या से खुद का नाश होता है वह ईर्ष्या से मुक्त हो जाएगा. मन को समझने का यही पहला चरण है.


बुद्ध बताते हैं मन को जानने का दूसरा चरण


व्यक्ति बुद्ध से पूछता है, यदि व्यक्ति पहले चरण से यह जान जाता है की वह मन द्वारा दिए लालचों के कारण दुखी है तो फिर दूसरा चरण क्या है? बुद्ध कहते हैं- ‘खोज पर निकलना’. दूसरे चरण के लिए ऐसे व्यक्ति की खोज पर निकलना होगा, जोकि पहले ही अपने मन को जान इससे मुक्त हो चुका है. क्योंकि वही तुम्हारा मार्गदर्शन कर पाएगा.


बुद्ध बताते हैं मन को जानने का तीसरा


व्यक्ति कहता है, लेकिन ऐसे व्यक्ति की पहचान कैसे होगी? बुद्ध कहते हैं- यही तीसरा चरण है. ‘सुनना’ ही अपने मन को समझने का तीसरा चरण है. व्यक्ति कहता है, क्या इसे देखकर पता नहीं किया जा सकता. बुद्ध कहते हैं- देखने में कोई व्यक्ति बहुत शांत और अच्छा लग सकता है. लेकिन उसके मन के भीतर क्या है, यह उसके शब्दों से ही पता चलता है. लेकिन किसी की बातों पर तब तक विश्वास नहीं करना चाहिए, जब तक कि वह तुम्हारे विवेक की कसौटी पर खरा न उतर जाए.


चौथा चरण है 'कर्म' करना


बुद्ध कहते हैं. ‘कर्म’ ही मन को समझने का चौथा चरण है. खुदको जानने के लिए सही दिशा में कर्म करना जरूरी है. लेकिन कर्म करते हुए व्यक्ति हर बार दो गलतियां करता है. पहली गलती है यह कि शुरुआत ही नहीं करना और दूसरी गलती पूरा रास्ता तय नहीं करना. इन दोनों गलतियों के पीछे हमारे ‘मन’ की ही चाल होती है.


व्यक्ति अपने कर्म को पूरा इसलिए नहीं कर पाता. क्योंकि वह सोचता है कि मैं कल से शुरुआत करूंगा तो कोई यह सोचता है कि मैं असफल हो जाऊंगा. इन गलतियों का मुख्य कारण है जागरूकता की कमी. इसके बिना मन व्यक्ति को उसके सही दिशा में चलने नहीं देता.


मन को जानने का पांचवा नियम है 'जागरुकता'


बुद्ध कहते हैं मन को जानने और समझने का पांचवा चरण है ‘जागरूकता’. इसीलिए हर कार्य को जागरूकता के साथ करो. बिना जागरूकता के साथ किया गया कार्य या फिर जिया गया क्षण मृत्यु के समान है. व्यक्ति बुद्ध से पूछता है- अपने जागरूकता के स्तर को कैसे बढ़ाया जा सकता है? बुद्ध कहते हैं ‘ध्यान’ से.


ध्यान ही मन को जानने , समझने और नियंत्रति करने का अंतिम चरण है. यानी ‘ध्यान’ ही वह नाव है, जिसपर बैठ मन रूपी नदी को पार किया जा सकता है. जिस व्यक्ति ने इन शुरुआती 5 चरणों से ध्यान को जान लिया, उसने अपने मन को जान लिया.


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