(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Buddha Amritwani: क्या है कर्म और किसे कहते हैं कर्म, गौतम बुद्ध की इस कहानी से जानिए कर्म का अर्थ
Buddha Amritwani: धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में हमेशा ही व्यक्ति के कर्म की बात कही गई है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर कर्म किसे कहते हैं और क्या है कर्म?
Buddha Amritwani, Gautam Buddha Story: गीता में नित्य कर्म, नैमित कर्म, काम्य कर्म, निश्काम्य कर्म, संचित कर्म, निषिद्ध कर्म आदि जैसे कई तरह के कर्मों के बारे में बताया गया है. लेकिन क्या कर्म का प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता है और सबसे अहम प्रश्न कि कर्म क्या और किसे कहते हैं.
एक बार गौतम बुद्ध के शिष्य ने भी उनसे यही प्रश्न किया था कि, कर्म क्या है और किसे कहते हैं. तब बुद्ध ने शिष्य को कर्म के बारे में बताते हुए यह कहानी सुनाई थी.
कर्म से जुड़ी गौतम बुद्ध की कहानी
एक राजा अपने मंत्री के साथ घोड़े पर बैठकर अपने राज्य का भ्रमण करने जाते हैं. राज्य भ्रमण के दौरान राजा की नजर एक दुकानकार पर पड़ती है और वह दुकान के पास रुक जाते हैं और दुकानदार को देख मंत्री से कहते हैं कि, क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि इस दुकानदार को मैं कल ही फांसी की सजा सुना दूं. पता नहीं क्यों इसे देख मुझे इसे मृत्युदंड देने की इच्छा हो रही है.
इतना कहते ही राजा वहां से अकेला ही चले जाते हैं और मंत्री उनसे इसका कारण भी नहीं पूछ पाते. अगले दिन मंत्री अपना भेष बदलकर दुकानदार के पास साधारण मनुष्य की तरह जाते हैं. वह दुकानदार चंदन की लकड़ियां बेचता था.
मंत्री दुकानदार से इधर-उधर की बात कर उससे काम और हाल चाल पूछते हैं. दुकानदार कहता है, क्या बताऊं भाई, मेरा हाल बहुत बुरा चल रहा है. लोग मेरी दुकान पर आते हैं. मेरी चंदन की लकड़ियों को सूंघते है, प्रसंशा भी बहुत करते हैं लेकिन खरीदता कोई नहीं है.
मैं बस इसी इंतजार में हूं कि कब हमारे राजा की मृत्यु हो जाए और उनके अंतिम संस्कार के लिए मेरे दुकान से ढ़ेर सारी चंदन की लकड़ियां बिक जाए. दुकानदार से इतना सुनते ही मंत्री को सारी बातें समझ में आने लगी. वह समझ गए कि आखिर क्यों राजा के मन में इस दुकानदार के प्रति नकारात्मक विचार थे.
मंत्री ने दुकानदार की बात सुन उससे थोड़ी चंदन की लकड़ियां खरीद ली. लकड़ियों की बिक्री से दुकानदार भी खुश हो गया और तुंरत मंत्री को लकड़ियां दे दी. राजा के पास पहुंचकर मंत्री ने उनके कहा कि, आप जिस दुकानदार को मृत्युदंड देने की सोच रहे थे, उसने आपके लिए भेंट स्वरूप चंदन की लकड़ियां भेजी है. यह सुनते ही राजा खुश हो गए और सोचने लगे कि बेवजह में उस बेचारे दुकानदार के बारे में बुरा सोच रहा था. राजा ने मंत्री से चंदन की लकड़ियां लेकर सूंघी, जिससे बहुत ही अच्छी सुगंध आ रही थी.
क्या है कर्म?
राजा दुकानदार की लकड़ियों से खुश होकर उसके लिए कुछ सोने के सिक्के भिजवाता है. अगले दिन मंत्री दुकानदार के पास जाकर कहते हैं कि ये सिक्के तुम्हें राजा ने भेंट स्वरूप दिए है. दुकानदार सोने के सिक्के पाकर खुश हो जाता है और मन में सोचता है कि मैं कितना गलत था जो राजा की मृत्यु के बारे में सोचता था. वह तो कितने दयालु हैं. गौतम बुद्ध कहानी को समाप्त करते हुए शिष्य से कहते हैं. हमारे काम, भावनाएं और विचार ही हमारे कर्म हैं.
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