Buddha Amritwani, Gautam Buddha Story: अच्छा और बुरा व्यक्ति की प्रवृत्ति है. लेकिन सवाल यह है कि क्यों और कैसे कोई व्यक्ति अच्छा या फिर बुरा बन जाता है? वहीं इससे भी जरूरी चीज यह है कि, अच्छा इंसान कैसे बनें. आज संसार में चारों ओर बुराई ही बुराई है. दंगे-फसाद, लड़ाई-झगड़े, हत्या और अपराधिक कामों से जुड़ी खबरों की कोई कमी नहीं है. इसका कारण है इंसान का बुरा बनना. जब इंसान की प्रवृत्ति बुरी हो जाती है तो संसार भी बुराईयों से भर जाता है.
गौतम बुद्ध की इस कहानी से जानेंगे, क्यों कोई व्यक्ति बुरा बन जाता है और बुरे काम करने लगता है. साथ ही इस कहानी में जानेंगे कैसे बनें अच्छा इंसान.
अच्छे या बुरे व्यक्ति बन जाने से जुडी गौतम बुद्ध की कहानी
एक गांव में एक शातिर चोर रहता था. पूरा गांव उस चोर के बारे में जानता था. लेकिन इसके बावजूद भी कोई उसे पकड़ नही पाया. उस शातिर चोर ने अपना संपूर्ण जीवन चोरी करने में लगा दिया. इतना ही नहीं आसपास के गांव और नगर में भी उसकी बराबरी का कोई चोर नहीं था.
शातिर चोर का बेटा भी बन गया चोर
चोर का एक बेटा था, जिसे वह अपनी तरह ही शातिर चोर बनाना चाहता था. इसलिए वह अपने बेटे से हमेशा कहता था कि, कभी किसी साधु या संन्यासी के उपदेश को मत सुनना. यदि कोई कुछ कहे भी तो अपने कान बंद कर वहां से भाग जाना. बचपन से ही उसका बेटा अपने पिता से इन्हीं बातों को सुनता आ रहा था, जिस कारण ये बातें उसके मन में बैठ गई थी. ऐसे में बड़े होकर बेटा भी अपने पिता की तरह शातिर चोर बन गया.
एक दिन उसे बड़ा लालच आया और वह राजा के महल में चोरी करने के उद्देश्य से जाने लगा. तभी रास्ते में लोगों की भीड़ नजर आई. चोर ने देखा कि लोग एक संन्यासी के चरणों में गिरकर उनका आशीर्वाद ले रहे हैं. वो संन्यासी गौतम बुद्ध थे. चोर साधु-संन्यासी से दूर रहता था, क्योंकि उसे अपने पिता से यही सीख मिली थी. लेकिन भगवान बुद्ध को देख वह उनकी ओर आकर्षित हो गया. इसका कारण यह है कि पहली बार उसे किसी तेजस्वी व्यक्ति के दर्शन हुए थे. अचानक उसे पिता की बात याद आ जाती है कि, साधु संन्यासियों से दूर रहना चाहिए.
चोर असमंजस में रहता है कि वह संन्यासी के पास जाए या चोरी करने के लिए आगे बढ़ जाए. एकाएक उसके मन में यह प्रश्न आता है कि, आखिर पिताजी क्यों साधु-संतों से दूर रहने को कहते थे. इसका उत्तर जानने के लिए चोर भी लोगों के बीच बैठ जाता है और भगवान बुद्ध के उपदेश सुनने लगता है.
बुद्ध लोगों कोझूठ बोलने की व्यर्थता और विश्वासघात के बारे में बताते हैं. उपदेश समाप्त होने के बाद सभी लोग अपने घर लौट जाते हैं और चोर भी चोरी करने के लिए महल की तरफ निकल जाता है. लेकिन पूरे रास्ते वह यही सोचता रहता है कि, क्यों न एक बार उस संन्यासी के उपदेश में कही बातों को मान कर देखा जाए.
इस तरह से वह चोरी करने के लिए महल की दीवार से कूदने के बजाय महल के द्वार से अंदर जाता है. उसे देख महल के द्वारपाल उसे रोकते हैं और भीतर जाने का कारण पूछते हैं. चोर कहता है, मैं चोर हूं और महल में चोरी करने जा रहा हूं. द्वारपाल उसकी बातें सुनकर हंसने लगते हैं और कहते हैं जरूर यह महल का सेवक या नौकर होगा और हमसे मजाक कर रहा है. यह सोचकर वे उसे महल के अंदर जाने दे देते हैं.
जिसका नमक खाया, उसके साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए
महल जाने के बाद चोर खजाना रखे तिजोरी के पास पहुंच जाता है और तिजोरी को तोड़कर धन और आभूषण को पोटली में भरकर भागने लगता है, तभी उसकी नजर महल के रसोई पर पड़ती है. रात होने के कारण सभी सो रहे होते हैं और रसोई में कोई नहीं रहता है. चोर को जोर की भूख लगी थी, इसीलिए वह रसोई में जाकर पेटभर खाना खा लेता है. इसके बाद चोर वहां से जाने लगता है. तभी उसे बुद्ध के उपदेश में सुनी दूसरी बात याद आती है कि ‘जिसका नमक खाया है, उसके साथ कभी भी विश्वासघात नहीं करना चाहिए.’
चोर सोचता है मैंने इस महल का नमक खाया है ऐसे में इनका धन चोरी कर मैं इनके साथ विश्वासघात करूंगा. इसीलिए चोर चुराए हुए धन को रसोई में ही छोड़कर जाने लगता है. महल के एक व्यक्ति की नजर चोर पर पड़ जाती है और वह शोर मजा देता है, जिससे महल के लोग चोर को पकड़ लेते हैं और राजा के पास ले जाते हैं. राजा चोर से पूछता है कि जब तुमने चोरी कर ली थी तो फिर इसे छोड़कर क्यों जा रहे थे. चोर कहता है, एक संन्यासी के उपदेश के कारण.
संगत और उपदेश से होता है व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण
चोर की बात से राजा प्रभावित होते हैं और उससे कहते हैं. अगर तुमने ऐसे उपदेश बचपन से ही सुने होते, तो तुम कभी चोर बनते ही नहीं. इतना कहकर राजा ने उसे कोई सजा नहीं और छोड़ दिया. लेकिन राजा ने उससे कहा कि, एक बात याद रखना ‘सही संगत और सही उपदेश से ही व्यक्ति अच्छा इंसान बनता है. बचपन से ही गलत संगत और गलत उपदेश मिलने के कारण वह बुरा व्यक्ति बन जाता है. संगत और उपदेश व्यक्ति का जीवन बदल देते हैं.
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