Buddha Amritwani: भगवान गौतम बुद्ध की इन बातों में छिपा है अशांत मन को शांत करने का मंत्र, आप भी जानें
Buddha Amritwani: चंचल मन को शांत करना बहुत जरूरी होता है. क्योंकि अशांत मन में कई सवाल होते हैं और यह इधर-उधर भटक सकता है. गौतम बुद्ध मन को शांत करने के आयामों के बारे में बताते हैं.
Buddha Amritwani, Gautam Buddha Story: हम सभी जानते हैं कि व्यक्ति का मन बहुत चंचल होता है. यही कारण है कि मन अशांत रहता है और कई तरह के सवालों का जन्म भी अशांत मन के कारण ही होता है. यदि आप जीवन में शांति चाहते हैं तो इसके लिए जरूरी है मन को शांत करना. लेकिन मन को शांत कैसे किया जाए.
गौतम बुद्ध से जुड़ी इस कहानी के माध्यम से आप जान सकते हैं कि, मन को शांत करने का क्या तरीका है. इसमें भगवान गौतम बुद्ध द्वारा मन को शांत करने के आयामों के बारे में बताया गया है. जानते हैं इस कहानी के बारे में, जिससे आपका जीवन बदल जाएगा.
मन को शांत करने की कहानी
एक बार एक लड़का गौतम बुद्ध के पास जाकर कहता है ‘मेरे जीवन में बहुत अशांति है. कृपा करके आप मेरा मार्गदर्शन कीजिए, जिससे कि में इस अशांति से छुटकारा पा सकूं?’. गौतम बुद्ध लड़के से जीवन की अशांति का कारण पूछते हैं. लड़का उत्तर देता है ‘अत्यधिक विचारों के कारण मेरे भीतर बहुत सारे विचार आते हैं, जिससे मेरा मन अशांत रहता है’. बुद्ध मुस्कुराते हुए कहते हैं- ‘ऊपर आकाश की ओर देखो और बताओ कि तुम्हे सूर्य दिख रहा है.’
लड़का ऊपर देखता है और कहता है धूप दिख रहा है. बुद्ध उससे पूछते हैं कि अगर तुम लगातार धूप में खड़े रहोगे तब क्या होगा? वह कहता है, मुझे अत्यधिक गर्मी लगेगी और शरीर में बैचेनी होगी.
बुद्ध लड़के से कहते हैं कि, अगर धूप में खड़े रहने से तुम्हे गर्मी लगती है तो इसमें दोष किसका है? सूर्य के ताप का या तुम्हारा? लड़का कुछ सोचने के बाद कहता है, इसका जवाब आप भी बताइए. बुद्ध कहते हैं, सूर्य का काम है ताप देना और ताप का काम है गर्मी लगना. ऐसे में तो दोष तुम्हारा ही है कि, तुम धूप में जाकर खड़े हुए, जिससे कि तुम्हें गर्मी लगी. तुम्हें अगर शीतलता चाहिए तो तुम्हें छांव में रहना होगा.
ठीक इसी तरह चंचल मन का भी स्वभाव होता है विचारों और भावनाओं को जागृत करना. विचार क्षण भर के लिए होते हैं, लेकिन विचार से पैदा हुई भावनाएं देर तक टिकी रहती है.लेकिन यह तुम्हें निर्णय लेना है कि तुम्हें विचार और भावनाओं के साथ चलना है या अलग दिशा बनानी है.
कैसे करें मन को शांत
बुद्ध कहते हैं, मन को शांत करने के लिए तन के आयाम पर काम करना सबसे आसान तरीका है. शरीर के स्तर पर हमारी कर्मेंद्रियां और ज्ञानेंद्रिया है. कर्मेंद्रियां कर्म और ज्ञानेंद्रिया ज्ञान से जुड़ी होती है. इससे हम अपनी संवेदनशीलता को बढ़ा सकते हैं. यानी हम जो भी काम करें उसे आनंद के साथ करें. मन के आयाम से हटकर तन के आयाम पर जाने से ही तुम्हारा चित्त शांत होगा.
ऐसा करने से तुम मन के आयाम से हटकर शरीर के आयाम पर आ जाओगे. ठीक उसी तरह जैसे तुम धूप से हटकर छांव में आ सकते थे. मन के आयाम से हटने पर तुम्हारी जागरूकता तन पर आ जाएगी. जब तुम तन के आयाम पर काम करोगे तब तुम्हारा चित्त शांत होगा. इसलिए हर काम को तन के आयाम पर करने से मन स्वत: शांत हो जाता है.
अपने मन के विचार और भावना को नहीं बल्कि सुर को सुनों
लड़का बुद्ध से कहता है, अपने भीतर के सुर को कैसे सुनें? बुद्ध कहते हैं, किसी शांत स्थान पर रहकर, जहां शांति हो. तब अपनी आंखें बंद करो और मन के भीतर चल रहे शोर से हटकर भीतर के सुर को सुनने की कोशिश करो. सुर निरंतर चलता रहता है. लेकिन बाहर के शोर के कारण तुम अपने मन के भीतर चल रहे सुर को नहीं सुन पाते हो. जब तुम अपने दोनों कानों को अपने हाथों से बंद कर दोगे, तभी मन के सुर को सुन पाओगे. इस तरह तुम मन की अशांति से दूर हो जाओगे और तुम्हारा मन शांत हो जाएगा.
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