Buddha Amritwani: आखिर क्यों हम जैसा बनना चाहते हैं वो ना बनकर कुछ और बन जाते हैं, इसका कारण जानिए गौतम बुद्ध से
Buddha Amritwani: हर किसी का अपना एक लक्ष्य होता है कि उसे जीवन में क्या करना है और क्या बनना है. लेकिन जैसा आप बनना चाहते हैं, वैसा नहीं बन पाते हैं. क्या आप इसका कारण जानते हैं?
Buddha Amritwani, Gautam Buddha: जीवन में हर व्यक्ति सफल बनना चाहता है. लेकिन सफल बनने के लिए आपको अच्छे विचारों को अपनाने की जरूरत है. गौतम बुद्ध के उपदेशों से आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और इससे आपका जीवन बदल जाता है. यही कारण है कि बुद्ध के विचारों को सुखी जीवन का सूत्र कहा जाता है.
सफल बनने के लिए हर व्यक्ति का अपना एक लक्ष्य पहले से ही निर्धारित होता है और वह उसी के अनुरूप काम करता है. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि आप जो बनना चाहते हैं वैसा नहीं बन पाते हैं. कुछ लोग इसे लेकर यह मान लेते हैं कि शायद उनकी किस्मत में ही यही लिखा होगा, तो वहीं कुछ लोग अपनी किस्मत को खराब कहने लगते हैं और कुछ लोग यह मानकर संतुष्ट हो जाते हैं कि शायद वह इसे डिजर्व ही नहीं करते थे. लेकिन इसका असली कारण कुछ और ही होता है. गौतम बुद्ध की इस कहानी से जानते हैं इसका कारण.
गौतम बुद्ध की कहानी
एक बार गौतम बुद्ध को एक सभा में उपदेश देना था. सभा में करीब 100 से ज्यादा लोग उपस्थित थे और उनका इंतजार कर रहे थे. गौतम बुद्ध आए लेकिन बिना कुछ कहे ही चले गए. बुद्ध का ऐसा व्यवहार देख सभी हैरान रह गए, लेकिन किसी ने उनसे कुछ कहा नहीं. अगले दिन फिर से सभा का आयोजन हुआ. लेकिन आज सभा में उपस्थित लोगों की संख्या घटकर 80 हो गई. आज भी बुद्ध ने ऐसा ही किया. वे सभा में आए लेकिन बिना कुछ बोले चले गए. आज भी लोग हैरान हुए लेकिन बुद्ध से किसी ने कुछ कहा नहीं.
अगले दिन फिर से सभा का आयोजन हुआ और लोगों की संख्या घटकर 50 हो गई. बुद्ध फिर से सभा में आए और बिना कुछ बोले ही चले गए. आज भी बुद्ध से किसी ने कोई प्रश्न नहीं किया. अगले दिन फिर से सभा का आयोजन हुआ और इस बार लोगों की संख्या केवल 30 थी. आज भी बुद्ध बिना कुछ बोले मुस्कुराकर चले गए.
आप कहानी को पढ़ते हुए इरिटेट हो गए होंगे और सोच रहे होंगे कि आखिर बुद्ध को कुछ बोलना नहीं तो बार-बार सभा का आयोजन क्यों हो रहा है. ठीक इसी तरह सभा में मौजूद लोगों को भी गुस्सा आ रहा था. लेकिन इसका जवाब जानने के लिए आपको ‘धैर्य’ रखना होगा. अगले दिन फिर से सभा का आयोजन और आज सभा में केवल 15 लोग ही उपस्थित रहे. लेकिन आज गौतम बुद्ध ने अपना स्थान ग्रहण कर लिया और उपदेश देने के लिए बैठ गए.
बुद्ध ने जिन 15 लोगों को उपदेश दिए वे उनके भिक्षु बन गए और इन लोगों ने आगे चलकर बुद्ध के ज्ञान को अलग-अलग दिशाओं में फैलाया. एक बार इन लोगों ने बुद्ध से प्रश्न किया कि, सभा का आयोजन होने के बावजूद भी आप क्यों कई दिनों तक बिना बोले ही चले जाते थे. बुद्ध ने उत्तर दिया.
मैं उन लोगो कोखोज में था, जो लायक हों. सभा के पहले दिन 100 से भी ज्यादा लोग थे, लेकिन उनमें से ज्यादातर लोगों को मेरे उपदेश से कुछ मतलब नहीं था. इसके बाद जो लोग अगले दिन आए उन्हें भी मेरे उपदेश से कोई मतलब नहीं था. वो तो केवल इसलिए आए थे क्योंकि वो देखना चाहते थे कि आखिर सभा में होता क्या है.
लेकिन मुझे ऐसे लोगों की तलाश थी, जो मेरे ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाए. मैं कई दिनों तक इसलिए बिना बोले चला गया, क्योंकि मैं यह देखना चाहता था कि, आखिर वो कौन लोग हैं तो सच में मेरे उपदेश को सुनना चाहते हैं और जिन्हें वास्तव में ज्ञान पाने की प्यास थी, ऐसे लोग ही रोज आएं. गौतम बुद्ध कहते हैं कि जिनके भीतर धैर्य था उन्हें मुक्ति का मार्ग मिला और जो लोग जल्दबाजी में थे, वो आज घर पर बैठे हुए हैं. बुद्ध कहते हैं कि, जिन लोगों में ‘धैर्य’ का गुण होता है, वे जीवन में कुछ भी पा सकते हैं. फिर चाहे आपका लक्ष्य कुछ भी हो. बिना धैर्य के कोई भी सफलता के लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकता.
धैर्य को कैसे बढ़ाएं
आज भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों में धैर्य नहीं है. सभी में जल्दबाजी और शीघ्र अति शीघ्र किसी कार्य को करने की होड़ मची है. लेकिन गौतम बुद्ध बताते हैं कि अपने भीतर धैर्य को कैसे बढ़ाएं? बुद्ध कहते हैं कि, निरंतर अभ्यास से हम अपने भीतर के धैर्य को बढ़ा सकते है. यानी आप जो भी बनना चाहते हैं, उसके लिए धैर्य की आवश्यकता है.
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