Budget 2024: प्रत्येक राज्य के संचालन और रख-रखाव में धन का उपयोग प्रचुर मात्रा में होता है. इस अर्थ के उपार्जन में शासन द्वारा लिए जाने वाले कर की आमदनी, अधीनस्थ राजाओं द्वारा दी जा रही राशि आदि का संचय राज्य के कोषागार में जमा होती रहती है. यही धन राज्य के विकास और इससे जुड़े अन्य कार्यक्रमों में खर्च होता है. इसे ही हम प्राचीन काल का बजट कह सकते हैं.


रामायण काल की अयोध्या नगरी या कह लें की समूचा कोशल प्रदेश एक आदर्श राज्य था. जाहिर है कि वहां की व्यवस्थाएं लोक और राज्य के कल्याण के लिए ही बनाई गई होंगी. वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के अंतर्गत पंचम और छठे सर्ग में दशरथ कालीन अयोध्या नगरी के वैभव का वर्णन मिलता है. अयोध्या में पाए जाने वाले अकूत धन का स्तोत्र कौन सा था उसकी एक झलक देखे :–


सामन्तराज सघेश्च बालिकर्मभीरावृताम।
नान्देशनिवासाशैश्च वनिगभीरूपशोभिताम।।14।। (वाल्मिकी रामायण बालकाण्ड 5.14)


अर्थ:- कर देने वाले सामंत नरेश उसे अमीर रखने के लिए सदा वहां रहते थे. विभिन्न देशों के निवासी वैश्य उस पुरी की शोभा बढ़ाते थे.


दूसरी झलक देखिए:–


तेन सत्याभिसन्धें त्रिवर्ग मनुतिष्ठता।
पालिता ता पुरी श्रेष्ठा इंद्रेनेवामरावती।।5।। (वाल्मिकी रामायण बालकाण्ड 6.5)


अर्थ:– धर्म, अर्थ और काम का सम्पादन करके कर्मो का अनुष्ठान करते हुए वे सत्यप्रतिज्ञ नरेश श्रेष्ठ अयोध्या पुरी का उसी तरह पालन करते जैसे इंद्र अमरावती का.


राम जब अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे तब उनके राज्य के हाल की एक झलक देखिए: –


कोशसंग्रहने युक्ता बलस्य च परिग्रहे।
अहितम चापि पुरुषम न हिन्स्युरविधुशकम।।11।।
(वाल्मिकी रामायण उत्तर काण्ड 7.11)


अर्थात उस विभाग के लोग कोष के संचय और चतुरंगिणी सेना के संग्रह में सदा लगे रहते थे. शत्रु ने भी यदि अपराध न किया हो तो वे उसके साथ हिंसा नहीं करते थे. तात्पर्य यह की वहां की अर्थव्यवस्था को ठीक रखने वाले निरपराध भाव से  कार्यरत थे.


अन्तरापाणीवीथियाश्च सर्वेच नट नर्तका:। सुदा नार्यश्च बहवो नित्यं यौवनशालीनः।।22।। (वाल्मिकी रामायण उत्तर काण्ड)


अर्थ:– रामजी का आदेश था अश्वमेध के आयोजन के समय की मार्ग में आवश्यक वस्तुओं के क्रय विक्रय के लिए जगह जगह बाजार भी लगने चाहिए. इसके प्रवर्तक वणिक और व्यवसायी लोग भी यात्रा करें. साथ ही नट नर्तक, युवा भी यात्रा करें.


रामायण काल में राजा कर लेकर भ्रष्टाचार नही करते थे, जो आज कल कई लोग करते हैं: –
वाल्मिकी रामायण अरण्या कांड 6.11 के अनुससार: –


सुमहान् नाथ भवेत् तस्य तु भूपतेः । यो हरेद् बलिषद्भागं न च रक्षति पुत्रवत् ।। 11 ।।
अर्थ:– जो राजा प्रजा से उसकी आय का छठा भाग करके रूप में ले ले और पुत्र की भांति प्रजा की रक्षा न करे, उसे महान अधर्म का भागी होना पड़ता था.


ये सभी एक स्वस्थ और जागरुक अर्थ व्यवस्था की ओर संकेत करते हैं. आशा करते हैं कि आज का बजट भी भारत वासियों के लिए लाभदायक हो.


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