Budhwar Vrat: बुधवार व्रत से होती है बुद्धि, व्यापार, धन में वृद्धि, जानें इसकी विधि, नियम, कथा
Budhwar Vrat: बुधवार का व्रत गणपति जी और बुध देव के समर्पित है.बुधवार का व्रत मंगल कामना की पूर्ति करता है. बुधवार व्रत कब से करना चाहिए, इस व्रत की विधि, नियम और कथा. यहां जानें
Ganesh ji Budhwar vrat: बुद्धि, विद्या, वाणी, रिद्धि, सिद्धि के देवता गणपति की पूजा बुधवार के दिन खास मानी जाती है. मान्यता है कि बुधवार का व्रत करने वालों की बुध ग्रह से संबंधित दोष से छुटकारा मिलता है. करियर में हर मोड़ पर सफलता मिलती है, मांगलिक कार्यों में किसी तरह की बाधा नहीं आती. आरोग्य, धन प्राप्ति के लिए भी बुधवार व्रत बहुत पुण्यकारी मानी जाता है. जानें बुधवार व्रत की विधि, नियम और कथा.
बुधवार व्रत कब-कैसे शुरू करें ?
धर्म ग्रंथों के अनुसार बुधवार का व्रत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के बुधवार से शुरू करना चाहिए. इसके लिए 7, 11, या 21 बुधवार व्रत का संकल्प लें. आखिरी बुधवार के दिन पूजा-पाठ, दान के बाद उद्यापन कर दें. बुधवार के दिन व्रत रखने पर जीवन में सुख-समृद्धि आती है और समय मंगलमय रहता है.
बुधवार व्रत की विधि (Budhwar Vrat Vidhi)
- बुधवार व्रत के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान के बाद घर या मंदिर में गणपति की पूजा करें. घर में ईशान कोण में गंगाजल छिड़कर पूजा की चौकी स्थापित करें.
- अब गणेश जी का दूध, दही, घी, शहद, से अभिषेक करें. बुध देव का स्मरण भी करें.
- चौकी पर गणपति को स्थापित करें. अब गणेश जी को लाल या पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें. कुमकुम, हल्दी, चंदन, अबीर, गुलाल, फूल, सिंदूर चढ़़ाएं.
- 11 दूर्वा की गांठ बप्पा को चढ़ाए, इसके बाद हर बुधवार को मोदक या बेसन के लड्डू का भोग लगाएं. बुधवार व्रत की कथा करें.
- अंत में आरती कर, गाय को हरा चारा खिलाएं और जरुरतमंदों को हरे मूंग, हरे वस्त्र, इलायची का दान करें.
- दिनभर फलाहार व्रत रखने के बाद शाम को पुन: गणपति के समक्ष दीप जलाकर पूजा करें और फिर सात्विक भोजन ग्रहण कर ही व्रत का पारण करें.
- बुधवार व्रत के दिन नमक का सेवन नहीं करना चाहिए. साथ ही बेटियों का अपमान न करें.
बुधवार व्रत कथा (Budhwar Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में मधुसुदन नाम का व्यक्ति अपनी पत्नी को लेने मायके पहुंचा. मधुसुदन उसी दिन यानी बुधवार को ही अपने पत्नी को मायके से विदा करना चाहता था. बुधवार का दिन होने के कारण उसके सास-ससुर ने विदा करने के लिए मना किया लेकिन वह नहीं माना और पत्नी को मायके से विदा कराकर अपने घर की तरफ चल दिया.
रास्ते में उसे कई परेशानियों को झेलना पड़ा. उसकी बैलगाड़ी टूट गई. दूर तक पैदल चलना पड़ा. दोनों रास्ते में कुछ देर रुके भी थे. मधुसुदन पानी पीने के लिए गया था लेकिन जब वह वापस लौट तो उसे पत्नी के पास अपने ही रूप वाले व्यक्ति को पाया. दोनों में बहुत लड़ाई हुई. बिना अपराध के गलतफहमी के कारण मधुसुदन को उस राज्य के राजा ने सजा सुना दी. तब आकाशवाणी हुई कि मधुसुदन को बुधवार के दिन पत्नी को विदा करवा कर नहीं ले जाना चाहिए था. मधुसुदन को सारी बात समझ आ गई, वह भगवान बुध की लीला समझ गया. उसने क्षमा मांगी और फिर गणपति जी का पूजन कर वह अपने लोक लौटा. मधुसुदन ने इसके बाद से बुधवार व्रत का श्रद्धा से पालन किया.
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