चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की छठी तिथि को चैती छठ के नाम से जाना जाता है. यह चार दिवसीय पर्व का आज दूसरा दिन है. पर्व की शुरुआत नहाय-खाय के साथ होती है और दूसरे दिन होता है खरना. पंचाग के अनुसार, साल में दो बार छठ पर्व मनाया जाता है. पहला चैत्र माह में और दूसरा कार्तिक माह में पड़ने वाली छठ. कार्तिक माह में आने वाली छठ पर्व का महत्व अधिक होता है. खरना के दिन व्रती रात को पूजा के बाद गुड़ की खीर खाते हैं और 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं. इसका समापन चौथे दिन सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य देने के साथ समाप्त होता है. आइए जानें खरना का महत्व और शुभ मुहूर्त के बारे में.
खरना का महत्व
चैती छठ के दूसरे दिन को खरना कहते हैं इसे लोहंडा के नाम से भी जाना जाता है. इस, दिन सुबूह स्नान आदि के बाद सूर्य देव की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है. शाम को पूजा के लिए गुड़ की खीर और रोट बनाई जाती है. भोग को रसिया के नाम के जानते हैं. खरना का प्रसाद मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी जलाकर बनाया जाता है. साथ ही इसे मिट्ट या पीतल के ही बर्तनों में बनाते हैं. अगर आपके पास चूल्हा नहीं है, तो साफ गैस भी रख सकते हैं. भगवान सूर्य देव को भोग लगाने से पहले प्रसदा को केले के पत्ते पर रखा जाता है.
चैती छठ की प्रमुख तिथियां
6 अप्रैल बुधवार- खरना
7 अप्रैल गुरुवार- डूबते सूर्य को अर्घ्य
8 अप्रैल शुक्रवार- उगते सूर्य का अर्घ्य
सूर्य को अर्घ्य देने का समय
डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का समय- 7 अप्रैल को शाम 5 बजकर 30 मिनट में सूर्यास्त होगा.
उगते सूर्य को अर्घ्य देने का समय- 8 अप्रैल को सुबह 6 बजकर 40 मिनट में सूर्योदय
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