आज यानी 2 अप्रैल से मां दुर्गा के नवरात्रि आरंभ हो रहे हैं. नवरात्रि के नौ दिन तक मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. मां शैलपुत्री हिमालयराज की पुत्री हैं. शैल का अर्थ है पत्थर या पहाड़. मां शैलपुत्री की पूजा से व्यक्ति के जीवन में उनके नाम की तरह स्थिरता बनी रहती है. जीवन में अडिग रहकर लक्ष्य की प्राप्ति की जा सके. 


नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. दुर्गासप्तशती का पाठ किया जाता है. पुराणों में कलश को भगवान गणेश का स्वरूप माना गया है इसलिए नवरात्रि में पहले कलश पूजा की जाती है. कहते हैं कि मां शैलपुत्री की कथा का श्रवण करने से व्यक्ति को जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. आइए पढ़ें मां शैलपुत्री की व्रत कथा. 


मां शैलपुत्री कथा 


नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा विधि-विधान के साथ की जाती है. मां का वाहन वृषभ (बैल) है. मां शैलपुत्री को हिमालयराज पर्वत की बेटी कहा जाता है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. एक बार प्रजापति दक्ष (सती के पिता) ने यज्ञ के दौरान सभी देवताओं को आमंत्रित किया. उन्होंने भगवान शिव और सती को निमंत्रण नहीं भेजा. लेकिन सती बिना निमंत्रण भी यज्ञ में जाने को तैयार थी. ऐसे में भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि बिना निमंत्रण यज्ञ में जाना ठीक नहीं. लेकिन सती नहीं मानी तो भगवान शिव ने उन्हें जाने की इजाजत दे दी. 


सती पिता के यहां बिना निमंत्रण पहुंच गई और उन्हें वहां बिना बुलाए मेहमान वाला व्यवहार ही झेलना पड़ा. उनकी माता के अलावा सती से किसी ने भी सही से बात नहीं की. बहनें भी यज्ञ में उपहास उड़ाती रहीं. इस तरह का कठोर व्यवहार और अपने पति का अपमान वे बर्दाश नहीं कर सकीं और क्रोधित हो गईं. इसी क्षोभ, ग्लानि और क्रोध में आकर उन्होंने खुद को यज्ञ में भस्म कर दिया. जैसे ही ये समाचार भगवान शिव को मिला उन्होंने अपने गणों को दक्ष के पास भेजा और उनके यहां चल रहा यज्ञ विध्वंस करा दिया. फिर अगले जन्म में उन्होंने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया, जिन्हें शैलपुत्री कहा जाता है. और नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री मां की पूजा की जाती है. 


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