Chaitra Navratri 2024 Day 6 Maa Katyayani Puja: मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करने के लिए नवरात्रि के समय को सबसे उत्तम माना जाता है. नवरात्रि के इन 9 दिनों में जो भक्त पूरे श्रद्धाभाव से मां के नौ रूपों की पूजा करता है, उसे चारों पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) की प्राप्ति होती है.


चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 09 अप्रैल 2024 को हुई है और नवरात्रि के छठवें दिन यानी रविवार 14 अप्रैल को मां कात्यायनी की पूजा की जाएगी. क्योंकि नवरात्रि में छठे दिन की अधिष्ठात्री देवी मां कात्यायनी हैं. इनके नाम की उत्पति के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं.


कत ऋषि के पुत्र महर्षि ’कात्य’ थे. महर्षि ’कात्यायन’ इन्ही के वंशज थे. घोर तपस्या के बाद माता पार्वती/कात्यायनी की पूजा सर्वप्रथम करने का श्रेय महर्षि कात्यायन को जाता है. इसीलिए इन माता का नाम देवी कात्यायनी पड़ा. चैत्र नवरात्रि पर ABP Live की विशेष पेशकश यहां देखें


कात्यायन महर्षि का आग्रह था कि देवी उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें. अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी नवमी तक इन्होंने तीन दिन कात्यायन द्वारा की जा रही अर्चना स्वीकृत की और दशमी को महिषासुर का वध किया. देवताओं ने इनमें अमोघ शक्तियां भर दी थी.


नवरात्रि (Navratri 2024) में प्रतिदिन उपासना करने के बाद छठे दिन साधक के मन आज्ञा चक्र में स्थित हो जाता है. उसमें अनन्त शक्तियों का संचार होता है. वह अब माता का दिव्य रूप देख सकता है. भक्त को सारे सुख प्राप्त होते हैं. दुख दारिद्र्य और पापों का नाश हो जाता है.


मां कात्यायनी का स्वरूप


मां कात्यायनी दिव्य और भव्य स्वरुप की हैं. इनका शुभ वर्ण हैं और स्वर्ण आभा से मण्डित हैं. इनकी चार भुजाओं में से दाहिने तरफ का ऊपरवाला हाथ अभय मुद्रा में और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में स्थित है. बाएं हाथ में ऊपर कर हाथ में तलवार और निचले हाथ में कमल है. इनका वाहन सिंह है. इनका मन्त्र है:–


चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥


सम्पूर्ण ब्रज की अधिष्ठात्री देवी यही माता थीं. चीर हरण के समय माता राधा और अन्य गोपियां इन्हीं माता की पूजा करने गईं थीं. कात्यायनी माता का वर्णन भागवत पुराण 10.22.1 में भी है, श्लोक है: –
हेमन्ते प्रथमे मासि नन्दत्रजकुमारिकाः । चेरुर्हविष्यं भुञ्जानाः कात्यायन्यर्च्चनव्रतम्॥


अर्थात: – श्रीशुकदेवजी कहते हैं- परीक्षित्। अब हेमन्त ऋतु आयी. उसके पहले ही महीने में अर्थात् मार्गशीर्ष में नन्द बाबा के व्रज की कुमारियां कात्यायनी देवी की पूजा और व्रत करने लगीं. वे केवल हविष्यान्न ही खाती थीं.


देवी पुराण के अनुसार आज के दिन 6 कन्याओं का भोज करवाना चाहिए. स्त्रियां आज के दिन स्लेटी (ग्रे) रंग के वस्त्र या साड़ियां पहनती हैं.


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