आचार्य चाणक्य महान राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री थे. आचार्य का भारत की दो प्रमुख शिक्षा संस्थाओं तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय में महत्वपूर्ण योगदान है. आचार्य ने पश्चिमी सीमाई राज्यों को आक्रांताओं के आक्रमण और अधिग्रहण से बाहर निकलने में सहायता की. मगध जनपद को धननंद के आतंक से मुक्त कराया.
चाणक्य लक्ष्य प्राप्ति के लिए अंतिम व्यक्ति और वस्तु को भी प्रयोग में लाते थे. उन्होंने लक्षशिला पर हुए बाहरी आक्रमण में छात्रों और शिक्षकों का संगठन खड़ा किया. इनके माध्यम से जंगल में लूटमार करने वाले डाकुओं को उन्होंने वीर योद्धाओं में परिणत कर दिया. वे सफलता प्राप्ति के लिए सर्वाेत्तम संभावना के साथ प्रयास करते थे. सभी में अवसर देखते थे. माताओं से तक उन्हें बच्चों को युद्ध के लिए सौंपने का आग्रह किया. महिलाओं को राजनीतिक गतिविधियों से जोड़ा.
वे किसी पूर्वाग्रह में आकर किसी को हीन अथवा बड़े की दृष्टि से नहीं देखकर सहयोगी के नजरिये से देखते थे. मौके पर जान की बाजी तक लगा देने के लिए प्रेरित करते थ. इसी नीति के तहत उन्होंने एक साधारण परिवार के बालक को योद्धा बना दिया. नेतृत्व क्षमता का विकास कर चंद्रगुप्त मौर्य के रूप में सशक्त बना दिया. चंद्रगुप्त की मदद से ही चाणक्य धननंद को सत्ताच्युत करने में सफल हुए.
आम व्यवहार में भी इस चाणक्य नीति पर अमल लक्ष्यपूर्ति के आवश्यक है. लक्ष्य के प्रति इतना समर्पण होना चाहिए कि हर वस्तु व्यक्ति का साथ सहयोग पाने में हमें तनिक संकोच न हो. बल्कि हम युक्तिपूर्वक उन्हें जोड़ पाएं उपयोग कर पाएं.