वर्तमान में हम अक्सर किसी भी कार्य पर पूर्णता से विचार किए बिना ही उसमें जुट जाते हैं. ऐसे में उसके गुण दोष और सफलता संदिग्ध हो जाते हैं. आज आवश्यक है कार्य करने से पहले कई स्तर पर मनन महत्वपूर्ण है. आचार्य चाणक्य ने इसके लिए तीन प्रश्न स्वयं के लिए बनाए थे.


पहला सवाल- यह कार्य क्यों किया जाए?
आचार्य के अनुसार उद्देश्य की स्पष्टता आवश्यक है. अस्पष्टता, अज्ञानता और भ्रम की स्थिति में कार्य करना अहितकर है. ऐसे में कार्य सिद्धि नहीं होती। कार्य व्यवहार पर कर्ता का नियंत्रण नहीं रहता. आवश्यक है कि कार्य किसलिए किया जा रहा है इस पर भलीभांति विचार कर लिया जाए.


दूसरा सवाल- कार्य के परिणाम क्या होंगे?
कार्य उद्देश्य से अधिक महत्वपूर्ण कार्यगत परिणाम है. कार्य पूर्ण होने के अल्पकालीन और दीर्घकालीन परिणाम क्या होंगे? परिणाम देश समाज और व्यक्ति के हित में सभी रूपों में नहीं है तो उसे नहीं किया जाना चाहिए. तात्कालिक क्षणिक और निजी लाभ के दायरे में किया गया कार्य केे सर्वव्यापक और दीर्घकालिक परिणाम अच्छे नहीं हैं तो उससे अंततः अहित ही होगा.


तीसरा सवाल- क्या मैं कार्य में सफल हो पाउूंगा?
उक्त दो सवालों के बाद तीसरा महत्वपूर्ण प्रश्न निजी योग्यता और संकल्पशक्ति से जुड़ा है। कार्य के उद्देश्य और परिणाम पर पूर्ण विचार के बाद स्वयं की सफलता पर भी विचार कर लेना चाहिए. आज के दौर में यह प्रश्न सबसे महत्वपूर्ण है. अक्सर लोग आत्ममूल्यांकन की बजाय आकर्षणवश कार्य करने लग जाते हैं. ऐसे में उनकी सफलता संदिग्ध हो जाती है। स्वआंकलन के लिए गुरुजनों और योग्य सलाहकारों से चर्चा कर लें.