(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Chanakya Niti: पति और पत्नी को बच्चों को लेकर हमेशा इन बातों का रखना चाहिए ध्यान
Chanakya Niti In Hindi: चाणक्य की चाणक्य नीति बच्चों की देखभाल और उनकी परवरिश पर भी दृष्टि डालती है. चाणक्य के अनुसार बच्चों की परवरिश के मामले में माता-पिता को बेहद सर्तक रहना चाहिए. आइए जानते हैं आज की चाणक्य नीति.
Chanakya Niti Hindi: चाणक्य एक योग्य शिक्षक थे. चाणक्य विश्व प्रसिद्ध तक्षशिला विश्वविद्यालय में शिक्षक थे. बच्चों की परवरिश कैसे की जानी चाहिए इस पर चाणक्य ने गहन अध्ययन किया था. चाणक्य के अनुसार बच्चों के मामले में माता-पिता को बहुत सावधान रहना चाहिए. चाणक्य के अनुसार बच्चों का मन बहुत ही कोमल होता है. बच्चों का दिमाग एक कोरी किताब की तरह होता है, इसलिए इस बात को ध्यान में रखते हुए बच्चों को बेहतर शिक्षा और आर्दश गुण प्रदान करने का प्रयास करना चाहिए.
बच्चों में संस्कार विकसित करें चाणक्य के अनुसार अभिभावकों को बच्चों में अच्छे संस्कार विकसित करने चाहिए. आचार्य चाणक्य का मानना था कि बच्चों में शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी होने चाहिए. क्योंकि संस्कार रहित शिक्षा का कोई महत्व नहीं होता है. चाणक्य के अनुसार संस्कार से ही शिक्षा का सही प्रयोग संभव है.
बच्चों में न पनपने दें गलत आदतें चाणक्य के अनुसार बच्चों की परवरिश करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कहीं उनमें कोई गलत आदते तो नहीं पनप रही है. बच्चों में सीखने की क्षमता बहुत तीव्र होती है, इसलिए बच्चों के सामने सदैव सही आचरण प्रस्तुत करना चाहिए. क्योंकि बच्चे जो देखते हैं वहीं अपनाते हैं. इसलिए बच्चों के सामने कभी गलत आचरण पेश नहीं करना चाहिए. माता पिता को समय समय पर बच्चों में सही और गलत के बारे में जानकारी देते रहना चाहिए.
पांच वर्ष लौं लालिये, दस सौं ताड़न देइ चाणक्य के अनुसार बच्चों के मामले में माता पिता को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए. इस पर चाणक्य की चाणक्य नीति का यह श्लोक महत्वपूर्ण है-
पांच वर्ष लौं लालिये, दस सौं ताड़न देइ। सुतहीं सोलह बरस में, मित्र सरसि गनि लेइ।।
चाणक्य नीति के इस श्लोक का का अर्थ है कि माता पिता को पांच साल तक बच्चे को प्यार और दुलार करना चाहिए. क्योंकि इस उम्र तक बालक को सही और गलत का भेद ज्ञात नहीं होता है. लेकिन जैसे-जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती जाती है उसे चीजों का ज्ञान होना आरंभ हो जाता है. उसे रिश्तों के साथ-साथ सांसारिक चीजों के प्रति मोह पैदा होने लगता है.
चाणक्य के अनुसार बच्चा दस वर्ष की उम्र में जिद करना सीख जाता है और गलत कार्यों के प्रति आकर्षित होने लगता है. यही से माता पिता की जिम्मेदारी आरंभ होती है. बच्चे को दस वर्ष की अवस्था से डांटना, टोकना और समझाना आरंभ कर देना चाहिए. चाणक्य के अनुसार जब बालक सोलह वर्ष की उम्र पूरी करे उसके साथ मित्रता का भाव अपनाना चाहिए. गलती करने पर उसे मित्र की भांति ही समझाना और बताना चाहिए.
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