Chanakya Niti: व्यक्ति को महान और श्रेष्ठ बनाती हैं ये तीन बातें, जानिए आज की चाणक्य नीति
Chanakya Niti In Hindi: चाणक्य के अनुसार हर व्यक्ति जीवन में महान और श्रेष्ठ बनाना चाहता है. लेकिन चाणक्य नीति कहती है कि महान और श्रेष्ठ बनाना इतना आसान नहीं है. इसके लिए व्यक्ति को जीवन में कुछ बातों पर ध्यान देना होता है. आइए जानते हैं आज का चाणक्य नीति.
Chanakya Niti Hindi: चाणक्य की चाणक्य नीति कहती है कि व्यक्ति को जीवन में ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ी को सीख मिले. चाणक्य के अनुसार जो व्यक्ति अपने कार्यों को मानव कल्याण के लिए समर्पित कर देता है, वह व्यक्ति जीवन में महान और श्रेष्ठ बनने की योग्यता रखता है. झूठ और दिखावा करने वाले व्यक्ति कभी भी महान और श्रेष्ठ नहीं बन सकते हैं कि ऐसे लोगों के कार्यों में स्वयं का निजी स्वार्थ छिपा होता है.
चाणक्य एक शिक्षक होने के साथ साथ एक श्रेष्ठ विद्वान भी थे. चाणक्य की चाणक्य नीति व्यक्ति को जीवन में सफल बनाने के लिए प्रेरित करती है. सफल बनाने के लिए व्यक्ति को अपने भीतर कुछ विशेषताओं को विकसित करना होता है, ये विशेषताएं ही व्यक्ति को महान और श्रेष्ठ बनाती है.
जीवन में अनुशासन नहीं तो सफलता नहीं चाणक्य के अनुसार जिस व्यक्ति का जीवन अनुशासित नहीं है वह कभी सफल नहीं हो सकता है. सफल होने की प्रथम शर्त अनुशासन है. सभी कार्यों को जो व्यक्ति अनुशासन में रहकर कार्य पूर्ण करता है, वह सफलता को प्राप्त करता है. अनुशासन से तात्पर्य व्यक्ति की दैनिक दिनचर्या से भी है. चाणक्य के अनुसार जो व्यक्ति आज के कार्यों पर कल पर टलता है. आलस का त्याग नहीं कर पाता है. ऐसे व्यक्ति से सफलता, श्रेष्ठता और महानता कोसों दूर रहती हैं.
जीवन में स्वार्थी न बनें चाणक्य के अनुसार जो व्यक्ति सदा अपने बारे में सोचता है. हमेशा अपने लाभ को लेकर गंभीर रहता है. ऐसे व्यक्ति कभी भी श्रेष्ठ और महान नहीं बन पाते हैं. श्रेष्ठ और महान बनने के लिए पहले शर्त त्याग है. जो व्यक्ति सभी प्रकार के सुखों को त्यागने की क्षमता और हृदय में मानव जाति के कल्याण की भावना रखता है. ऐसा व्यक्ति सभी गुणों से पूर्ण होता है. समाज ऐसे लोगों का अनुशरण करता है. ऐसे लोग समाज को नई दिशा प्रदान करते हैं.
लालच का त्याग करें चाणक्य के अनुसार लालच ही व्यक्ति को स्वार्थी और अन्य प्रकार के अवगुणों से युक्त बनाता है. लोभ की भावना व्यक्ति इस तरह से फंस जाता है कि वह अच्छे और बुरे का भेद भी नहीं समझ पाता है. ऐसे लोग एक प्रकार के भम्र में जीते हैं. चाणक्य के अनुसार जब यह भ्रम टूटता है तो ऐसे लोग अपने आप को अकेला और असहाय महसूस करते हैं. इसलिए लालच का त्याग करें.
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