आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य तक्षशिला गुरुकुल के आचार्य थे. वे पाटलिपुत्र से अध्ययन के लिए तक्षशिला पहुंचे थे. किशोरावस्था में माता-पिता को खोने के बाद संघर्षपूर्ण जीवन बिताया. आचार्य चाणक्य ने साधारण शिक्षक होने के बावजूद सिकंदर की सेना को हराया. उत्तरी सीमा के छोटे राज्यों को इकट्ठा कर सिकंदर की अजेय दिखने वाली सेना का सामना किया.


मगध के सम्राट धननंद को धूल चटाई. इसके लिए उन्होंने जो रणनीति अपनाई उसके मूल में सबसे प्रमुख बात यह थी कि उन्होंने बिखरी ऊर्जा को एक दिशा दी. उसे लक्ष्योन्मुख बनाया. छात्रों, गृहस्थों, माताओं, बहनों, युवाओं, समाज के सभी वर्ग के लोगों को उनकी योग्यतानुसार कार्य सौंपा. एक प्रकार से असंगठित शक्ति को लक्ष्य देकर प्रभावशाली बना दिया. साधारण लोगों से असाधारण क्रांति की. यह सब चाणक्य की कुशल नीति और कार्यशैली से संभव हुआ था.


चाणक्य योग्यता की पहचान करना तो शुरुआत से ही जानते थे. यही कारण था कि एक ग्वाले बालक चंद्रगुप्त को उन्हें शिक्षा दी. शस्त्र सिखाए. नेतृत्व की दक्षता दी. उन्हें मालूम था कि चंद्रगुप्त वह सब कर पाएगा, जिसकी जिम्मेदारी उसे दी जाएगी. चाणक्य ने नट, जादूगर, संत-बाबाओं तक का इस्तेमाल युद्ध में विजय पाने के लिए किया.


उन्होंने मुहूर्त देखने वालों, जमूरे वालों, संत एवं बाबा आदि सभी के माध्यम से जनमानस में यह संदेश स्थापित करवा दिया कि मगध की सत्ता पलटने वाली है. इससे उन्हें लोगों के मन को पढ़ने में आसानी हुई. जो धननंद से पीड़ित थे, उनका इस्तेमाल विद्रोह में किया. चाणक्य ने बुद्धि कौशल से जन समाज की बिखरी ऊर्जा को एक उद्देश्य में प्रयोग कर दिखाया.