भारतीय दार्शनिक आचार्य चाणक्य राजनीति शास्त्र के महाज्ञानी होने के साथ ही व्यवहारिक ज्ञान पर भी अपनी नीतियां बनाई हैं. जीवन के गूढ़ रहस्यों को आसानी से समझाती हैं. जीवन संघर्ष में आगे बढ़ने की राह दिखाते हैं.
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस स्थान पर आजीविका न मिले, लोगों में भय, लज्जा, उदारता तथा दान देने की प्रवृत्ति न हो ऐसे स्थान पर व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं होता. वहां रहना भी कठिन ही होता है. व्यक्ति को आवास के लिए सब प्रकार से साधन सम्पन्न और व्यावहारिक स्थान चुनना चाहिए, ताकि वह एक स्वस्थ वातावरण में अपने परिवार के साथ सुरक्षित एवं सुखपूर्वक रह सके.
लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र संगतिम् ॥
इन पांच चीजों को विस्तार से बताते हुए वे कहते हैं कि जहां निम्नलिखित पांच चीजें न हों, उस स्थान से कोई सरोकार नहीं रखना चाहिए.
1.जहां रोजी-रोटी का कोई साधन अथवा आजीविका या व्यापार की स्थिति न हो.
2.जहां लोगों में लोकलाज अथवा किसी प्रकार का भय न हो.
3.जिस स्थान पर परोपकारी लोग न हों और जिनमें त्याग की भावना न पाई जाती हो.
4.जहां लोगों को समाज या कानून का कोई भय न हो.
5.जहां के लोग दान देना जानते ही न हों.
वास्तव में समाज की स्वस्थता के लिए धर्म भीरुता, ईश्वर लोक परलोक पर आस्था होगी वहीं असमाजिक कार्यों पर प्रतिबंध लगेगा. लोग धर्म में आस्था के कारण गलत कार्यों से परहेज करेंगे. अन्यता अगर लोक लज्जा, संकोच और धर्म भय नहीं होगा तो आदमी पशुुवत व्यवहार करेगा. व्यक्तिगत स्वार्थ में कानून तोड़ेगा. दूसरों का हित मार कर अपना-अपना देखेगा. कुल मिलाकर वह स्थान संघर्षों का स्थान बन जाएगा. इसलिए चाणक्य ने कहा है कि लोगों में दानशीलता का भी होना आवश्यक है ताकि उस स्थान के गरीबों की भलाई भी हो सके. अगर ऐसा स्थान नहीं है तो फिर उस स्थान पर रहना सभ्य मनुष्यों के लिए अहितकारी है. उस स्थान को तुरंत छोड़ देना चाहिए.