Safalta Ki Kunji: चाणक्य की चाणक्य नीति कहती है कि व्यक्ति को कभी क्रोध नहीं करना चाहिए. क्रोध में व्यक्ति अच्छे और बुरे का अंतर भूल जाता है और क्रोध में कभी ऐसा कदम उठा लेता है जो स्वयं के लिए तो हानिकारक होता ही है, दूसरों को भी मुसीबत में डाल देता है. इसलिए क्रोध से बचने का प्रयास करना चाहिए.


गीता के उपदेश में भी भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को क्रोध से दूर रहने का संदेश दिया था. विद्वानों का मानना है कि योग्य व्यक्ति कभी क्रोध नहीं करता है. क्रोध में व्यक्ति की चेतना नष्ट हो जाती है. क्रोध में व्यक्ति कभी ऐसे कदम उठा लेता है, जिससे उसका जीवन खराब हो जाता है. विद्वानों का मानना है कि क्रोध व्यक्ति का सबसे बड़ा दुश्मन है. इससे जहां तक हो सके बचना चाहिए. क्रोध अहंकार को बढ़ाता है. अहंकार व्यक्ति का सर्वनाश कर देता है. इसलिए इन स्थितियों से बचने का प्रयास करना चाहिए.


क्रोध का नाश कैसे करें
क्रोध से दूर रहने का प्रयास करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है क्योंकि क्रोध से भ्रम की स्थिति भी बनती है. भ्रम संबंधों को भी प्रभावित करता है. क्रोध में इंसान का स्वभाव बदल जाता है. हर कोई उससे भय खाने लगता है. लोग दूरी बना लेते हैं. जो व्यक्ति हर समय क्रोध करता है उससे लोग दूर रहना ही उचित समझते हैं. क्रोध को ज्ञान, अध्यात्म और संस्कार से दूर किया जा सकता है. जो व्यक्ति धर्म को जानता है, मानव जीवन की उपयोगिता को जानता और समझता है वह क्रोध से दूर रहता है.


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