Safalta Ki Kunji: चाणक्य नीति कहती है कि मित्रता बहुत सोच समझ कर करनी चाहिए. वहीं चाणक्य यह भी कहते हैं कि सच्चे मित्र की पहचान, हमेशा संकट के समय होती है. गीता में भी सच्चे मित्र के बारे में बताया गया है. सभी जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच एक सखा यानि एक मित्र का भी रिश्ता था, जिसे दोनों ने ही बाखूबी निभाया था.
आज के दौर में मित्रता अधिक दिनों तक नहीं चलती है. इसके पीछे क्या कारण है? चाणक्य कहते हैं जो व्यक्ति आपके धन, पद और शक्ति से प्रभावित होकर मित्रता करें, वह मित्रता अधिक दिनों तक नहीं रहती है. ग्रंथों में भी कहा गया है कि पद, धन और शक्ति कभी स्थाई नहीं होती है. ये आते जाते रहते हैं. इसलिए जब व्यक्ति के पास ये तीनों चीजों होती हैं तो कई लोग मित्र बनकर अगल बगल मौजूद रहते हैं, लेकिन जैसे ही ये तीनों चीजें चली जाती हैं, ये लोग भी किनारा कर जाते हैं.
चाणक्य की मानें तो मित्रता करते समय बहुत ही सावधानी बरतनी चाहिए. असली और सच्चा मित्र वही है जो आपके रूतबे से नहीं बल्कि आपके विचारों और व्यवहार से प्रभावित होकर मित्रता करे. इतना ही नहीं सच्चा मित्र सदैव सही और उचित सलाह देता और गलत कार्यों को करने से रोकता है.
संकट के समय कभी न छोड़े साथ
महापुरुषों ने मित्रता के बारे मे कहा कि मित्रता ठीक उसी प्रकार से करनी चाहिए जिस प्रकार से वस्त्र का संबंध मनुष्य से होता है. वस्त्र जीवन भर मनुष्य का तन ढ़कता है और मृत्यु पर कफन बनकर साथ जाता है. इसका अर्थ ये है कि मित्रता में इसी तरह का भाव होना चाहिए. मित्रता में ऐसा समर्पण होता है, वहीं सच्ची प्रीत और मित्रता है.
दोस्ती में इन बातों का रखें ध्यान
दोस्ती तभी गहरी और मजबूत होती है जब उसमें किसी प्रकार का लालच न हो. लालच एक ऐसा रोग है, जो हर रिश्ते को कमजोर करता है. दोस्ती में कभी लालच और जलन की भावना नहीं आनी चाहिए. इससे दोस्ती कमजोर होती है.