Safalta Ki Kunji: चाणक्य की चाणक्य नीति कहती है कि हर व्यक्ति को मान सम्मान प्राप्त नहीं होता है. जो व्यक्ति अपने सभी कार्यों को अच्छे ढंग से करता है उसमें मानव हित समाहित रहता है और गलत आदतों से दूर रहता है वो व्यक्ति सदैव सम्मान प्राप्त करता है.


कुरूक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. श्रीमद्भागवत गीता के उपदेशों में मानव कल्याण का रहस्य छिपा हुआ है. महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन जब धर्मसंकट में फंस गए तब भगवान ने उन्हें गीता का रहस्य समझाया. गीता के उपदेश व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाते हैं. इन उपदेशों को जिसने अपने जीवन में आत्मसात कर लिया वह दुखों पर विजय प्राप्त कर लेता है.


चाणक्य के अनुसार व्यक्ति अपने कार्मों के आधार पर मान सम्मान प्राप्त करता है. जो व्यक्ति गलत आदतों से घिरा रहता है उसे अपयश प्राप्त होता है और जो श्रेष्ठ कार्य करता है और मानव कल्याण के कार्यों में सहभागिता निभाता है उसे सम्मान प्राप्त होता है. प्रबुद्धजनों का मानना है कि मनुष्य का जीवन जब तक है तब तक व्यक्ति को श्रेष्ठ कार्य करने चाहिए. लोगों के हित में कार्य करने चाहिए. व्यक्ति को इन कार्यों से बचना चाहिए.


निंदारस से दूर रहें
चाणक्य के अनुसार निंदारस से खतरनाक कोई दूसरा रस नहीं है. जो व्यक्ति इसका आदी होता है उसे सच्चाई और अच्छाई का आभास नहीं हो पाता है. निंदा रस में डूबा व्यक्ति स्वयं का तो अहित करता ही है साथ दूसरों को भी हानि पहुंचाने का कार्य करता है. निंदा करने वाले नकारात्मक विचारों से भरे रहते हैं. ऐसे लोगों को सम्मान प्राप्त नहीं होता है. समय आने पर लोग इनसे दूरी बना लेते हैं.


अहंकार से दूर रहें
अहंकार से व्यक्ति को दूर रहना चाहिए. जो व्यक्ति अपने भीतर के अहंकार को नष्ट कर देता है वह श्रेष्ठ कार्य करने में सक्षम होता है. अहंकारी व्यक्ति से हर कोई दूरी बनाकर चलता है.


क्रोध पर काबू पाएं
सम्मान प्राप्त करना है तो व्यक्ति को विनम्रता को अपनाना चाहिए. विनम्रता श्रेष्ठ गुण हैं वहीं जो व्यक्ति क्रोध करता है वह स्वयं का नुकसान करता है. क्रोध में व्यक्ति सही और गलत का भेद नहीं कर पाता है.


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