Safalta Ki Kunji:गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि दुखों का कारण हमारी कामनाएं हैं. कामनाएं यानि इच्छाएं. ये तो सभी जानते हैं कि इच्छाएं कभी पूर्ण नहीं होती हैं. एक पूरी होती है तो दूसरी आरंभ हो जाती है. श्रीमद्भागवत कथा में भी भगवान श्रीकृष्ण ने तृष्णा को सभी कष्टों को जननी माना है. सफलता की कुंजी कहती है कि जब तक व्यक्ति अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करना नहीं सीख लेता है तब तक वह परेशान और व्याकुल रहता है. जिस प्रकार से कस्तुरी धारण करने वाला हिरन कस्तुरी की महक को महसूस कर इधर-उधर भटकता रहता है उसी प्रकार से मनुष्य भी अपनी तृष्णा की भूख को मिटाने के लिए निरंतर भटकता रहता है. इस भटकाव में वह जीवन के रस का स्वाद ही नहीं ले पाता है. इसलिए इन बातों पर गौर करना चाहिए-
प्रेम से लोगों को अपना बना लो
चाणक्य की चाणक्य नीति कहती है कि व्यक्ति को सदैव घृणा, लालच और क्रोध से दूर रहना चाहिए. व्यक्ति को प्रेम करने की आदत डालनी चाहिए. प्रेम से जीवन में खुशियां भर जाती है. प्रेम ही नफरत को समाप्त करता है. इच्छाएं जागृत होती हैं तो नफरत और घृणा पनपने लगती है. मनुष्य को स्वयं से प्रेम करना चाहिए और जीवन के महत्व को समझना चाहिए. व्यक्ति जिन चीजों के लिए जीवन के आनंद को छोडे बैठा है वह सभी चीजें एक न एक दिन नष्ट हो जाएंगी.
क्रोध को निकाल कर फेंक दें
गीता में कहा गया है कि क्रोध व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु है. क्रोध से दूर रहना चाहिए. क्रोध सबसे पहले स्वयं का नाश करता है इसके बाद वह अपनों को हानि पहुंचाता है. क्रोध पर काबू करना जिसने सीख लिया है वही जीवन का आनंद लेता है.
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