Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य ने जीवन के हर पहलू पर बात की है. मनुष्यों की सुखी जिंदगी के लिए चाणक्य ने पत्नी, संतान और मानव मन पर अधिक प्रकाश डाला है. वह कहते हैं जिन लोगों का जीवन साथी हर बात मानता है, जिनकी संतान वश में रहती है और जो बुरे समय में भी संतुष्ट रहता है उसके लिए धरती पर ही स्वर्ग है.


चाणक्य ने अपने एक श्लोक में गुणी संतान का जिक्र किया है जो व्यक्ति का बुढ़ापा संवार देती है. चाणक्य कहते हैं कि चाणक्य ने क्यों कहा एक बच्चा सबसे अच्छा. आइए जानते हैं.



एकेनापि सुवर्ण पुष्पितेन सुगन्धिता।


वसितं तद्वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा॥


चाणक्य ने अपने श्लोक के माध्यम से बताया है कि कैसे एक संतान ही कुल का ख्याल रखने के लिए काफी है. उनके अनुसार, एक से अधिक संतान का लाभ नहीं है. जिस प्रकार वन में सुन्दर खिले हुए फूलों वाला एक ही वृक्ष अपनी सुगन्ध से सारे वन को सुगन्धित कर देते है उसी प्रकार एक ही सुपुत्र सारे कुल का नाम ऊंचा कर देता है. एक गुणी संतान ही माता-पिता का बुढ़ापा संवारने के लिए काफी है.


ऐसी संतान करती है कुल का नाश


चाणक्य के अनुसार जो लोग कुल की वृद्धि और समृद्धि के लिए एक से अधिक संतान की अभिलाषा रखते हैं, उन्हें अपनी सोच पर पुन: विचार करना चाहिए. चाणक्य के अनुसार जो संतान अपने माता पिता के लिए कटु वचन बोले, दुख दे, अपने फायदे के लिए परिवार का अहित सोचे वह जल्द ही परिवार को संकट में डाल देती है. यहां भी चाणक्य ने उदाहरण देकर समझाया है कि जिस तरह  एक सूखा हुआ जलता वृक्ष सारे वन को जला कर राख कर देता है, उसी प्रकार एक ही कुपुत्र सारे कुल के मान, मर्यादा और प्रतिष्ठा पर कालिख पोत देता है.


एक ही सुपुत्र से सुखी रहता है परिवार


चाणक्य कहते हैं कि जो पुत्र दुख और निराशा देने वाले हों तो कितने भी पुत्र हों क्या फायदा होगा. इससे तो वह एक ही पुत्र अच्छा है, जो पूरे घर को सुख-शांति और सहारा प्रदान कर सके.


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