Chanakya Niti In Hindi: सुख की अभिलाषा पूर्ण होने पर मन प्रसन्न होता है. मन जब तक प्रसन्न न हो तब तक सुख की अनुभूति नहीं होती है. आचार्य चाणक्य के अनुसार सुख की अनुभूति करने के लिए भौतिक संसाधनों पर निर्भर नहीं रहा जाता. चाणक्य कहते हैं जो भौतिक संसाधनों को सुख की श्रेणी में रखकर जीवन को जीने की दिशा में गतिमान रहते हैं वे स्वयं को धोखे में रखते हैं. उनके मुताबिक सुख का संबंध आत्मा से है और आत्मा ही परमात्मा है. परमात्मा को धोखा देना असंभव है.


चाणक्य कहते हैं सुखी होने के लिए व्यक्ति को अपने अचारण में बदलाव करना चाहिए. यानि उन वस्तुओं के प्रति अधिक आसक्त नहीं होना चाहिए जो व्यक्ति की तृष्णा यानि लालच में वृद्धि करें. सुख का सबसे बड़ा शत्रु लालच ही है. इससे सदैव दूर रहना चाहिए. इसके अतिरिक्त चाणक्य अन्य बातें भी बताई हैं. जिन पर अमल करके सुख की प्राप्ति और अनुभूति की जा सकती है.


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अनुशासन: सुख प्राप्त करना है तो सबसे पहले जीवन को अनुशासित बनाना होगा. अनुशासित जीवन शैली में ही सुख और समृद्धि का रहस्य छिपा हुआ है. सुबह जागने और सोने से पहले तक सभी कार्यों अनुशासित ढंग से किया जाना चाहिए.


अध्यात्म: व्यक्ति को उसके होने का अहसास अध्यात्म के जरिए ही ज्ञात हो सकता है. अध्यात्म व्यक्ति को परमात्मा से जोड़ता है. जो व्यक्ति परमात्मा की शक्ति को पहचान लेता है उसके जीवन से दुख दूर चला जाता है.


सत्य: सुख तब सुगम हो जाता है जब सत्य का आवरण व्यक्ति के आभामंडल को सुशोभित करता है. सत्य के मार्ग पर चलकर ही सुख को प्राप्त किया जा सकता है. सुख और सत्य में अधिक भेद नहीं है. सत्य ही दरअसल असली सुख है.


त्याग: जो व्यक्ति अपने भीतर की त्याग की भावना को जागृत कर लेता है वह ही परम सुख को प्राप्त कर लेता है. त्याग मोह,माया और ईष्र्या का होना चाहिए. व्यक्ति के सुख में ये बड़ी बाधा हैं.


प्रकृति का आभार: जीवन प्रकृति की देन है. नित्य प्रतिदिन प्रकृति का आभार व्यक्ति करना चाहिए. प्रकृति बहुत कुछ सिखाती है. प्रकृति ही हमें सुख के लिए प्रेरित करती है. इस संबंध को जो पहचान लेता है वह सुखी हो जाता है.


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