Chanakya Niti Hindi: चाणक्य नीति कहती है कि व्यक्ति के जीवन में सुख और दुख लगे रहते हैं. लेकिन जब व्यक्ति अधिक महत्वाकांक्षी हो जाता है तो उसके दुख बड़ जाते हैं. क्योंकि व्यक्ति की महत्वाकांक्षा कभी भी समाप्त नहीं होती हैं. इसलिए चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को महत्वाकांक्षी नहीं होना चाहिए.


महाभारत की कथा भी आचार्य चाणक्य की इस बात को सत्य साबित करती है. महाभारत का युद्ध महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए किया गया था. हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र दुर्योधन के पुत्र में इस हद डूब चुके थे कि उन्होंने दुर्योधन की महत्वाकांक्षाओं की तरफ ध्यान ही नहीं दिया. दुर्योधन की महत्वाकांक्षा थी कि वह स्वयं हस्तिनापुर का राजा बनें. इसी महत्वाकांक्षा ने कौरवों का सर्वनाश कर दिया.


चाणक्य नीति भी कहती है कि व्यक्ति को परिश्रमी होना चाहिए न कि महत्वाकांक्षी. चाणक्य के अनुसार महत्वाकांक्षा व्यक्ति को सबकुछ नष्ट कर देती और दुखों में वृद्धि करती है. उपयुक्त समय पर यदि महत्वाकांक्षा को समाप्त न किया जाए तो कभी कभी ये गंभीर नुकसान भी पहुंचाती है.


धर्म के महत्व को समझें
महत्वाकांक्षा को समाप्त करने के लिए धर्म का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए. धर्म पर चलने वालों को किसी भी प्रकार का लालच और तृष्णा आकर्षित नहीं कर पाती है.


परिश्रम पर भरोसा करें
व्यक्ति को सिर्फ अपने परिश्रम पर भरोसा करना चाहिए. जिस व्यक्ति को अपने परिश्रम पर भरोसा नहीं होता है. वे जीवन में सफल होने के लिए अन्य मार्ग अपनानते हैं. जब व्यक्ति महत्वाकांक्षी होता है तो वह लक्ष्य को पाने के लिए परिश्रम का सहारा न लेकर अन्य गलत और अनैतिक मार्गों को भी अपनाता है. ऐसा करना पतन का कारण भी बन सकता है.


नैतिकता को कभी न त्यागें
महत्वाकांक्षा उस व्यक्ति को कभी स्पर्श भी नहीं कर पाती है जो नैतिकता के मार्ग पर चलते हैं. व्यक्ति को कभी भी नैतिक गुणों का त्याग नहीं करना चाहिए. नैतिक मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति सदैव महत्वाकांक्षाओं से दूर रहता है.


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