आचार्य चाणक्य वार्तालाप में बेहद सजग थे. हर बात को उतना ही जाहिर किया करते थे जितना अत्यावश्यक होता था. उनका मानना था कि जब तक कार्य पूर्ण न हो उसे जाहिर करने और बताने से बचाना चाहिए. साथ ही गंभीरतापूर्वक उसका संरक्षण करना चाहिए.


धननंद के सत्ता परिवर्तन में इसी गुण का सर्वाधिक योगदान रहा. इस गुण के कारण भी नजदीकियों के बीच रहकर भी अपनी योजना को छिपाए रखने में सफल हो सके. सत्ता का सम्पूर्ण गोपनीय विभाग और उसके जासूस उनके पीछे लगे होने के बावजूद वे उतना ही जान पाते थे जितना चाणक्य स्वयं चाहते थे. कहा जाता है कि उनके इसी गुण के कारण उनके करीबी उन्हें वज्र कुटिल कहकर बुलाया करते थे.


चाणक्य की इस नीति पर हम सब को भी अमल करना चाहिए. अक्सर हम सोची हुई बात को लोगों में जाहिर कर देते हैं. या कुछ होशियार जन हम से हमारे तथ्य जानने में सफल हो जाते हैं. इससे हमारी योजना तो कमजोर होती ही है. कई बार इस कारण हमें उपहास और अपयश को भी भोगना पड़ता है.

आचार्य चाणक्य की इस खूबी की श्रेष्ठता का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि वे अधिकांश समय शिष्यों, परिचितों और समकक्षों से घिरे रहने केे बावजूद उनके बीच अपनी निज योजनाओं स्पष्ट होने नहीं देते थे. इसी कारण धननंद और सेल्युकस जैसे राजा महाराजा उनके समक्ष रणनीति में विफल रहे.