Chanakya Niti : सुख और दुख व्यक्ति के जीवन का अहम हिस्सा हैं. इन दोनों ही स्थितियों को किस तरह से भोगना चाहिए इस पर आचार्य चाणक्य की 'चाणक्य नीति' विस्तार और बेहद प्रभावशाली ढंग से बताती है. चाणक्य और उनकी नीतियों से तो हर कोई भलीभांति परिचित है. चाणक्य ने व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करने वाली हर छोटी बड़ी चीज पर प्रकाश डाला है. चाणक्य के अनुसार अगर व्यक्ति के जीवन में जब ये चार चीजें आ जाती हैं तो व्यक्ति अंदर ही अंदर दुख के सागर में डूबने लगता है. आइए जानते हैं इन चीजों के बारे में.
पत्नी से वियोग: पत्नी से अधिक प्रेम करने वाला इंसान पत्नी से बिछुड़ने का गम बर्दाश्त नहीं कर पाता है. पत्नी से दूर रहने या वियोग होने वाली परेशानी को व्यक्ति किसी से कह भी नहीं पाता है और वह इस स्थिति में अंदर ही अंदर घुटने लगता है. एक वियोग उस व्यक्ति के लिए किसी अग्नि से कम नहीं होती है जिसमें वह स्वयं जलता रहता है. उसकी इस पीड़ा को कोई नहीं समझ पाता है.
दुष्ट राजा की सेवा करना: यह भी एक प्रकार का दुख है. दुष्ट राजा की सेवा करना जब मजबूरी बन जाए तो ऐसा व्यक्ति अंदर ही अंदर परेशान रहता है. उसकी अंतर आत्मा उसे परेशान करती रहती है. दुष्ट राजा से वह मुक्ति पाना चाहता है लेकिन उसे कोई रास्ता नहीं सूझता है. ऐसे स्थिति में वह अंदर ही अदंर जलता रहता है. इस दर्द को वह चुपचाप सहता रहता है.
ऋण न चुका पाना: जब व्यक्ति कर्जदार हो जाता है और वह उस कर्ज को जब नहीं चुका पाता है तो उसे जो सहन करना पड़ता है वह कोई दूसरा नहीं समझ सकता है. कर्ज न चुका पाने वाला व्यक्ति कभी खुश नहीं रहता है उसके जीवन में हमेशा अंधकार का साया बना रहता है उसका आत्मविश्वास भी क्षीण हो जाता है.
धूर्तों की सभा में जाना: जहां पर शत्रु एकत्र हों तो व्यक्ति को वह सब सहन करना पड़ता है जो जिसकी उसने कभी कल्पना भी न की होती है. धूर्त या शत्रुओं से घिर जाने के दौरान जो पीड़ा सहन करनी पड़ती है वह एक ऐसी अग्नि की तरह होती है जिसमें वह स्वयं जलता है लेकिन दूसरे व्यक्ति को ये नहीं दिखाई देती है. जब तक व्यक्ति धूर्तों की सभा में रहता है तब तक उसकी आत्मा मन मस्तिष्क प्रताड़ित रहता है, वह अपने संयम पर काबू किस प्रकार रखता है यह वो ही जानता है.
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