चाणक्य की चाणक्य नीति कहती है कि धन के मामले में व्यक्ति को बहुत ही गंभीर रहना चाहिए. धन के महत्व को जो नहीं पहचानते हैं वे समय आने पर कष्ट उठाते हैं. विद्वानों का भी मत है कि पूंजी की रक्षा करनी चाहिए. पूंजी का व्यय सोच समझ कर रही करना चाहिए. जीवन को सरल और सुगम बनाने वाले साधनों का प्रयोग सावधानी पूर्वक करना चाहिए. पूंजी यानि धन भी इनमें से एक प्रमुख चीज है.
आय से अधिक खर्च करना समझदारी नहीं होती है
विद्वानों का मानना है कि जो व्यक्ति आय और व्यय में सही संतुलन नहीं बना पाता है. उसके जीवन में सदा ही दुख बने रहते हैं. आय से अधिक व्यय समझदारी की निशानी नहीं मानी गई है. इसलिए मनुष्य को आमदनी से अधिक खर्च नहीं करना चाहिए.
धन का संचय करना चाहिए
पूंजी को बचाकर करना चाहिए. इसीलिए धन का संचय करने पर बुजुर्ग जोर देते हैं क्योंकि ऐसे लोगों को जीवन में धन की उपयोगिता का महत्व पता है. चाणक्य के अनुसार बुरे वक्त में धन ही सच्चा मित्र होता है. इसलिए बुरे वक्त के लिए धन को बचाकर रखना चाहिए. भोग विलासता की वस्तुओं पर अनावश्यक खर्च करने से बचना चाहिए. धन व्यक्ति के पास रहता है तो आत्मविश्वास बना रहता है. मान सम्मान भी प्राप्त होता है.
कर्ज लेने और देने से बचें
कर्ज को अच्छा नहीं माना गया है विद्वान भी मानते हैं धन का कर्ज व्यक्ति के मानसिक तनाव में वृद्धि करता है. व्यक्ति का आत्मविश्वास कमजोर होता है. इसलिए कर्ज लेने और देने की स्थिति से बचना चाहिए. विषम परिस्थितियों में ही इस दिशा में विचार करना चाहिए.
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