कूटनीति, राजनीति, अर्थनीति और समाजशास्त्र के पंडित आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य की सीखें देश-काल परे हैं. हर युग में उनकी नीतियां महत्वपूर्ण हैं. आचार्य का मानना है कि सामूहिक और सार्वजनिक प्रयासों में नेतृत्वकर्ता को सूचनाओं के प्रयोग में बेहद सतर्क रहना चाहिए. किस व्यक्ति के लिए कितनी सूचना आवश्यक है, इसका लीडर को ज्ञान होना चाहिए.
आचार्य ने स्वयं सिकंदर और धननंद के विरुद्ध संघर्ष में सूचनाओं के बेहतर प्रयोग से सफलता पाई थी. उनके अनुयायी समाज के विभिन्न वर्गाें के जागृत युवा थे. उनमें उत्साह था लेकिन युद्ध कौशल का अभाव था. इनका प्रयोग आचार्य चाणक्य ने सूचनातंत्र के सक्षम प्रयोग से किया. वे जानकारी साझा करने में सर्वाधिक सतर्क रहते थे. संबंधित तक आवश्यक जानकारी पहुंचा दी जाती थी. इससे आचार्य बिखरे युवाओं के समूह को सक्षम दल में परिवर्तित करने में सफल रहे.
आज के दौर में मैनेजमेंट की क्लासेस का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा सूचना प्रबंधन होता है. आधुनिक युग इंफॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी का युग है. इसकी समझ ही नेता को हर क्षेत्र में औरों से आगे रखती है. गरिमा गोपनीयता का विषय ही सूचना तंत्र का मूल होता है. चाणक्य ने इसी के बल पर समाज के लगभग हर वर्ग का नेतृत्व किया.
आचार्य को वज्र कुटिल की संज्ञा इसीलिए दी गई थी कि कोई उनसे किसी भी योजना या घटना की उनकी मर्जी के बिना जान नहीं पाता था. चाणक्य ने डाकुओं तक को लक्ष्य दिया. उनसे कार्य लिया. यह सब सूचना तंत्र के सक्षम प्रयोग से ही संभव हो सका था.