चाणक्य नीति मनुष्य को सफल होने के लिए प्रेरित करती है. आचार्य चाणक्य की गिनती भारत के श्रेष्ठ विद्वानों में की जाती है. उनकी बताई हुई बातें आज भी प्रासंगिक हैं, यही कारण है कि आज भी बड़ी संख्या में लोग चाणक्य नीति का अध्ययन करते हैं. आइए जानते हैं आज की चाणक्य नीति-


विषादप्यमृतं ग्राह्यममेध्यादपि काञ्चनम् ।
रनीचादप्युत्तमां विद्यांस्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि ।।


चाणक्य नीति के इस श्लोक का अर्थ है कि यदि संभव हो सके तो जहर मे से भी अमृत निकाल लेना चाहिए. यदि सोना गन्दगी में भी पड़ा हो तो उसे उठा लेना चाहिए, इसे स्वच्छ कर उपयोग में लाएं.कमजोर कुल मे जन्म लेने वाले से भी सर्वोत्तम ज्ञान ग्रहण करने में कोई दोष नहीं है. उसी तरह यदि कोई बदनाम घर की कन्या भी महान गुणो से परिपूर्ण है और आपको कोई सीख देती है तो अपनाने में संकोच नहीं करना चाहिए.


कस्य दोषः कुलेनास्ति व्याधिना के न पीडितः ।
व्यसनं के न संप्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम् ।।


चाणक्य नीति कहती है कि इस दुनिया मे ऐसा कोई नहीं है जिस पर दाग न हो, वह कौन है जो रोग और दुख से मुक्त है. सुख सदैव नहीं रहता है.


सत्कुले योजयेत्कन्यां पुत्रं विद्यासु योजतेत् ।
व्यसने योजयेच्छत्रुं मित्रं धर्मे नियोजयेत् ।।


चाणक्य नीति के इस श्लोक के अनुसार कन्या का विवाह अच्छे खानदान मे करना चाहिए. पुत्र को श्रेष्ठ शिक्षा देनी चाहिए, शत्रु को आपत्ति और कष्टों में डालना चाहिए, और मित्रों को धर्म कर्म में लगाना चाहिए. जो ऐसा कर पाते हैं वे सफलता प्रदान करते हैं.


दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः ।
सर्पो दंशति काले तु दुर्जनस्तु पदे पदे ।।


चाणक्य नीति के इस श्लोक का अर्थ है कि एक दुष्ट और एक सर्प मे यही अंतर है कि सांप तभी डसता है जब उसकी जान पर खतरा हो, लेकिन दुष्ट व्यक्ति पग-पग पर हानि पहुचने की कोशिश करेगा। इसलिए सावधान रहना चाहिए.


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