आचार्य चाणक्य श्रेष्ठ विद्वान थे. वे योग्य शिक्षक भी थे. प्रसिद्ध तक्षशिला विश्वविद्यालय में वे आचार्य थे. उन्होंने समाज और मनुष्य को प्रभावित करने वाले सभी कारणों का बहुत गहराई से अध्ययन किया था. उनका मानना था कि व्यक्ति की पहचान संकट यानि बुरा समय आने पर ही होती है.
चाणक्य के अनुसार वुरा वक्त हर किसी के जीवन में आता है. लेकिन इस बुरे वक्त में जो धैर्य और संयम को नहीं त्यागता है वही इस बुरे वक्त से बाहर निकल पाता है. इसके अतिरिक्त उन्होनें कुछ और चीजों के बारे में भी बताया है जिन्हे मनुष्य को नहीं त्यागना चाहिए. खास तौर पर बुरे समय में. विपत्ति और संकट के समय यही चीजें व्यक्ति को जीने की राह दिखाती हैं. इन चीजों के सहारे ही व्यक्ति आगे बढ़ता है और अपने परिश्रम से बुरे वक्त से निकलकर सफलता का प्राप्त करता है.
बुरे वक्त में धैर्य नहीं खोना चाहिए
मनुष्य के जीवन में जब बुरा समय आ जाए तो इससे घबराना नहीं चाहिए. बुरा समय भी व्यक्ति के जीवन में उसी तरह से होता है जैसे दिन के बाद रात. रात गुजरते ही फिर से सबेरा होता है. मनुष्य के जीवन में आने वाले सुख-दुख के पल भी ऐसे ही होते हैं. जब सुख स्थाई नहीं है तो दुख भी स्थाई नहीं है. इसलिए मनुष्य को बुरे वक्त के लिए भी तैयार रहना चाहिए. बुरे वक्त को धैर्य के साथ गुजारना चाहिए. जो लोग धैर्य को त्याग देते हैं उनका जीवन संकटों से भर जाता है.
संयम से लेना चाहिए काम
खराब समय जब भी आए तो व्यक्ति को बहुत ही गंभीर हो जाना चाहिए और बड़े सयम से काम लेना चाहिए. बुरे वक्त में एक गलत फैसला मुसीबत को बढ़ा सकता है. इसलिए बहुत सोच समझ कर ही कदम उठाना चाहिए. अच्छे समय का इंतजार करना चाहिए.
क्रोध पर काबू रखना चाहिए
मनुष्य का खराब समय हो तो उसे क्रोध से बचना चाहिए. तनाव के कारण क्रोध आना स्वाभाविक है. लेकिन इससे हर संभव तरीके से बचना चाहिए. बुरे समय में क्रोध आग में घी का काम कर सकता है और एक नई मुसीबत को जन्म दे सकता है.
परिश्रम करते रहना चाहिए
कितना ही खराब समय आ जाए व्यक्ति को बैठे नहीं रहना चाहिए. लगातार परिश्रम करते रहना चाहिए. परिश्रम ही व्यक्ति को इस संकट से निकलने में मददगार होता है. हिम्मत हार कर हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाने से बुरा वक्त नहीं जाएगा, इसके लिए सतत परिश्रम करते रहना चाहिए.
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