आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य राजनीति के प्रकांड पंडित थे. महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पूर्व जरूरी जानकारियों को वे स्वयं जुटाना पसंद करते थे. उनके सभी निर्णय और प्रयास अचूक होते थे. इसके लिए स्वयं के शोध पर भरोसा रखते थे. वे स्वयं मगध की वीथियों, नाट्यरंग शालाओं और अन्य प्रमुख स्थलों पर भेष बदलकर घूमा करते थे. छोटे संकेतों से बड़ी संभावनाओं को जानने की क्षमता से ही वे मगध के राजप्रासाद तक पहुंच बनाने में सफल हो पाए थे.


त़क्षशिला के सबसे लोकप्रिय शिक्षक होने, छात्रों और योद्धाओं की बड़ी संख्या होने के बावजूद वे अत्यंत थोड़े लोगों पर एक स्तर तक ही भरोसा करते थे. उनकी योजनाओं की क्रमबद्ध जानकारी ही लोगों को हो पाती थी. आज के दौर में सूचना शक्ति ‘इंर्फोमेशन इज पॉवर‘ के कॉन्सेप्ट को सबसे पहले समझने वाले वही आचार्य थे.


वर्तमान सूचनाओं की बारिश का दौर है. हर पल तमाम जानकारियां आप तक पहुंचाई जा रही हैं. टीवी रेडियो इंटरनेट और सोशल मीडिया हम सभी तक दिन रात असंख्य सूचना पहुंचा रहे हैं. ऐसे में इनकी विश्वसनीयता संदिग्ध हो चली है. प्राप्त सोर्स की सत्यता भी अस्पष्ट होती है. ऐसे में स्वयं के शोध से ही सत्य तक पहुंचा जा सकता है.


इसके लिए खुद के प्रयास के साथ विश्वसनीय स्त्रोतों पर ही भरोसा करें. यदि ऐसा नहीं करेंगे तो आप गलत तथ्यों में पड़कर बड़ा नुकसान उठा सकते हैं. यह नुकसान आर्थिक होने के अलावा, सामाजिक, राजनीतिक और रक्षा संबंधी भी हो सकता है. अतः सूचनाओं की सत्यता पर स्वयं ही खोजबीन का रास्ता अपनाएं. अपने अनुभव, शिक्षा और विश्वस्त स्त्रोतों पर ही जाएं.